वरिष्ठ गजलकार। दो गजल संग्रह, एक कविता संग्रह और अनुवादों का एक संग्रह प्रकाशित। अद्यतन गजल संग्रह पत्ते चिनारों के

गजल

एक
बला की ख़ूबसूरती से दिलों में आग लगती है
तुम्हारी जी हज़ूरी से दिलों में आग लगती है

वतन तो है नहीं चौसर सियासत और धर्मों का
ये मुल्ला औ’ मदारी से दिलों में आग लगती है

गुजर होगा कहां-कैसे, अगर सागर ही प्यासा हो
विमुख! नदियों की यारी से दिलों में आग लगती है

ये क्यों डरते हो तुम ‘वो तो’ निरर्थक गूंज है केवल
उसी! तलवार-धारी से दिलों में आग लगती है

जिन्हें कुर्सी के मोह ने अपने चंगुल में दबोचा हो
कि इक आवाज़ भारी से दिलों में आग लगती है

हमें भी तो तुम्हारे वस्ल की चाहत रही होगी
नज़र की इक कटारी से दिलों में आग लगती है

‘शलभ’ तुम शमअ के ही इश्क़ में जल कर फना होना
तुम्हारी ऐतबारी से दिलों में आग लगती है।

दो
इश्क़ से, पहले तो फायर कर दिया
दिल से भी ज़ालिम ने बेघर कर दिया

जुल्म भी बेसाख़्ता मुझ पर किए
उलटे फिर दावा भी दायर कर दिया

मो’तबर रहता मैं उसका ता-उमर
जोर-जबरन ही रिटायर कर दिया

इक नदी के वस्ल ने तौफ़ीक़1 दी
झील को निस्सीम सागर कर दिया

वेद-मंतर पढ़ हुआ अभिमान जब
‘अप्सरा’ ने सब बराबर कर दिया

उसके दर पे बैठे हैं धूनी रमाए
इंकिसारी2 ने ही रहबर कर दिया

सुन लो अब नादाँ ‘शलभ’ की दास्तां
इश्क़ के रंजों ने शाइर कर दिया।

1.तौफ़ीक़= शक्ति/सामर्थ्य
2.इंकसारी = ख़ाकसारी/अति-विनम्रता

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