स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सेस्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। वर्तमान में NGO ‘संवेदना और CAGE से संबद्ध।

गैब्रिएल गार्सिया मार्केज़

(1928-2014) नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्व प्रसिद्ध लैटिन अमेरिकी कथाकार।प्रसिद्ध उपन्यास है एकांत के सौ वर्ष’ (वन हंड्रेड इयर्स ऑफ साल्टीच्यूड)।अपने जादुई यथार्थवाद के लिए विशेष रूप से जाने गए।

नाबो पुआल पर औंधे मुंह पड़ा था।उसे लगा, जैसे पेशाब-भरे अस्तबल की बदबू उसके जिस्म को रगड़ रही हो।अपनी भूरी और चमकदार चमड़ी पर उसे आखिरी घोड़े द्वारा छोड़ी दहक का अहसास हुआ, पर वह अपनी खाल को महसूस करने में असमर्थ था।नाबो कुछ भी महसूस नहीं कर पा रहा था।लगा जैसे माथे पर घोड़े की नाल की आखिरी चोट से वह नींद में चला गया और यही एक अहसास बचा था।उसने आंखें खोलीं।फिर से बंद कीं, और अब शांत था, पसरा हुआ, सख्त, जैसा कि वह सारी दोपहर रहा, समय के अहसास से परे बढ़ते हुए, जबतक उसे पीछे से किसी ने नहीं कहा : ‘चलो नाबो।बहुत सो लिए।’

उसने करवट ली पर घोड़े उसे नहीं दिखे; दरवाजा बंद था।इस तथ्य के बावजूद कि उनकी बेचैन टापें अब उसे सुनाई नहीं दे रही थीं।नाबो को लगा होगा कि जानवर अंधेरे में वहीं कहीं थे।उसे लगा कि वह शख्स जो उससे बात कर रहा था, वह अस्तबल के बाहर से बोल रहा था, क्योंकि द्वार अंदर से बंद था।एकबार फिर पीछे से उसे आवाज आई : ‘सही है नाबो, तुम पहले ही बहुत सो चुके हो।तुम करीबन पिछले तीन दिनों से सोए हुए हो।’

तब जाकर नाबो ने आंखें खोलीं।उसे याद आया : ‘एक घोड़े ने मुझे दुलत्ती मारी थी, इसीलिए मैं यहां पड़ा हूँ।’

उसे नहीं पता अभी क्या वक्त था।दिन पीछे छूट गए थे।ऐसा लगता था जैसे किसी ने शनिवार की उन सभी रातों को, जब वह शहर के चौक पर जाया करता था, गीले स्पंज से मिटा दिया है।वह सफेद कमीज के बारे में भूल गया।वह भूल गया कि उसके पास हरी स्ट्रा-हैट और गहरे रंग की पतलून थी।वह यह भी भूल गया कि उसके पास जूते नहीं थे।नाबो हर शनिवार की रात को चौक पर जाया करता और चुपचाप कोने में बैठ जाता, संगीत सुनने नहीं- उस अश्वेत व्यक्ति की ताक में।हर शनिवार उसने उसे देखा था।नीग्रो ने सींग की कमानी वाला कानों से बंधा चश्मा पहना था और पीछे वाले म्यूजिक स्टैंड पर सैक्सोफोन बजाया।नाबो ने नीग्रो को देखा, पर नीग्रो ने उसे कभी नहीं देखा।अगर किसी को पता होता कि नाबो उस नीग्रो को देखने हर शनिवार की रात को चौक पर जाया करता है और उससे पूछता कि नीग्रो ने उसे देखा या नहीं (अब नहीं, क्योंकि अब उसे याद नहीं) तो नाबो यही कहता, नहीं! यही एक काम था जो वह घोड़ों का खरहरा करने के बाद करता; नीग्रो को ताकना।

एक शनिवार को नीग्रो बैंड में अपने तयशुदा स्थान पर नहीं था।नाबो को लगा कि शायद म्यूजिक स्टैंड वहां होने के बावजूद उसने पब्लिक कंसर्ट में बजाना बंद कर दिया।हालांकि यकीनन इसी वजह से,‡बावजूद इसके कि म्यूजिक स्टैंड वहीं था- बाद में उसे लगा कि अगले शनिवार की रात वह वापस आ जाएगा।लेकिन अगले शनिवार भी वह नहीं आया।अब म्यूजिक स्टैंड भी अपनी जगह पर नहीं था।

नाबो एक तरफ पलटा।उसने उस शख्स को देखा जो उससे बातें कर रहा था।पहले तो उसने अस्तबल के अंधेरे में गुम उस आदमी को पहचाना नहीं।उससे बातें करता और उसके घुटने थपथपाता वह आदमी किसी प्रकाश-पुंज पर बैठा था।

‘एक घोड़े ने मुझे दुलत्ती मार दी’, उसे पहचानने की कोशिश करते हुए नाबो ने फिर कहा। ‘बिलकुल ठीक’, उस आदमी ने कहा। ‘घोड़े अब यहां नहीं हैं और हम कॉयर (गायक दल) में तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।’ नाबो ने सिर हिलाया।वह अभी भी सोच नहीं पा रहा था, पर उसे लगा कि उसने उस आदमी को कहीं देखा है।नाबो कुछ समझा नहीं, लेकिन इसपर उसे हैरानी भी नहीं थी कि कोई उससे ऐसा कहे, क्योंकि हर रोज घोड़ों का खरहरा करते समय उनका ध्यान बंटाने के लिए उसने कुछ गाने बनाए थे।फिर जो वह घोड़ों को सुनाता, वही गाने बैठक में उस मूक बालिका का ध्यान बंटाने के लिए भी गाता।जब वह गा रहा होता, तब कोई उससे कहता कि वह उसे कॉयर में ले जाएगा तो उसे कोई हैरानी नहीं होती।अब वह और भी कम हैरान था, क्योंकि वह कुछ समझ नहीं पा रहा था।वह थका हुआ था, कुंठित, पशुवत। ‘मुझे पता लगाना है कि घोड़े हैं कहां’, उसने कहा।उस आदमी ने जवाब दिया। ‘मैंने तुम्हें पहले ही बताया कि घोड़े यहां नहीं हैं।हम सिर्फ यह चाहते हैं कि तुम्हारी जैसी आवाज हमें मिल जाए।’ और शायद चेहरा पुआल में धंसा होने के कारण नाबो ने ऐसा सुना, पर घोड़े की नाल से हुए माथे के घाव के दर्द को वह अन्य भ्रामक अनुभूतियों से अलगा नहीं पा रहा था।उसने पुआल की तरफ मुंह घुमाया और सो गया।

फिर भी नाबो दो-तीन सप्ताह तक चौक पर गया, उस नीग्रो के बैंड में न होने के बावजूद।अगर वह पूछता कि उस नीग्रो का क्या हुआ तो शायद उसे जवाब मिल जाता।पर उसने पूछा नहीं और म्यूजिक कंसर्ट में जाना जारी रखा जबतक कि कोई और शख्स किसी और सैक्सोफोन के साथ उस नीग्रो की जगह नहीं आया।नाबो को तब यकीन हो गया कि अब नीग्रो दोबारा नहीं दिखेगा और उसने आगे से वहां न जाने का फैसला किया।जब वह जागा तो उसे लगा वह थोड़ी सी देर के लिए ही सोया है।

सीलन भरी पुआल की महक से उसकी नाक जल रही थी।उसकी आंखों के सामने अभी भी अंधेरा था, उसे घेरता हुआ।और वह आदमी अभी तक कोने में था।उसके अस्पष्ट और शांत स्वर, जिसने उसके घुटने थपथपाए थे, कह रहे थे, ‘नाबो हम तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।तुम करीब दो साल से सो रहे हो और उठने से मना कर रहे हो।’ तब नाबो ने फिर आंखें मींच लीं।फिर उसने आंख खोली, कोने की तरफ देखता रहा, और उस आदमी को फिर से देखा, असमंजस और हैरानी से।तब जाकर उसने उसे पहचाना।

अगर घर के लोगों को पता होता कि नाबो शनिवार की रातों को चौक पर क्या करता है तो शायद वे ऐसा सोचते कि उसने वहां जाना बंद इसलिए किया है कि अब संगीत घर में ही है।ऐसा तब हुआ जब बच्ची का दिल बहलाने के लिए हम घर में ग्रामोफोन ले आाए।

चूंकि सारा वक्त किसी को इसमें चाभी भरनी पड़ती थी, स्वाभाविक था कि वह व्यक्ति नाबो होता।ऐसा वह तभी कर सकता था, जब घोड़ों की देखभाल से फारिग होता।लड़की रेकार्ड सुनते हुए बैठी रहती।कई बार जब संगीत बज रहा होता वह अपनी कुर्सी से उतर जाती, तब भी दीवार की ओर देखती हुई और लार टपकाती खुद को बरामदे तक घिसट लाती।नाबो ग्रामोफोन की सुई उठा लेता और खुद गाने लगता।शुरुआत में जब वह हमारे घर आया और हमने पूछा कि वह क्या काम कर सकता है तो नाबो ने कहा था- वह गा सकता है।पर इसमें किसी की दिलचस्पी नहीं थी।हमें जरूरत थी घोड़ों के खरहरे के लिए किसी लड़के की।नाबो रुक तो गया, पर वह हमेशा गाता रहता जैसे हमने उसे गाने के लिए रखा हो और घोड़ों का खरहरा तो बस काम की बोरियत दूर करने का बहाना हो।ऐसा करीब एक साल तक चलता रहा जबतक कि हम सबने इस बात को स्वीकार नहीं कर लिया कि वह लड़की कभी चल नहीं पाएगी, किसी को पहचान नहीं सकेगी, प्राय: मृतप्राय और अकेली रहेगी, दीवारों को घूरती हुई, ग्रामोफोन सुनती रहेगी जबतक कि हम उसे कुर्सी से न उठाएं और उसके कमरे तक न ले जाएं।फिर वह हमारे लिए दुख का कारण नहीं रही; पर नाबो अब भी वफादार, समयनिष्ठ था, नियम से ग्रामोफोन बजाता था।

यह उन दिनों हुआ, जब नाबो शनिवार शाम चौक जाया करता।एक दिन जब लड़का घुड़साल में था, ग्रामोफोन के पास से किसी की आवाज आई, ‘नाबो!’ हम बरामदे में थे और ऐसी किसी बात में किसी की दिलचस्पी नहीं थी जो किसी ने कही ही न हो।पर जब हमने दोबारा सुना : ‘नाबो!’ तो हमने सिर उठाया और पूछा, ‘बच्ची के साथ कौन है?’ और किसी ने कहा: ‘मैंने किसी को अंदर आते नहीं देखा।’ दूसरे ने कहा, ‘मुझे पक्का यकीन है मैंने किसी को नाबो को बुलाते सुना।’ पर जब हम देखने गए तो बच्ची को जमीन पर दीवार से सटा हुआ पाया।

नाबो जल्दी वापस आया और सोने चला गया।यह उससे अगले शनिवार की बात थी, जब वह चौक पर नहीं गया था, क्योंकि नीग्रो की जगह कोई और आ गया था।और तीन हफ्ते बाद एक दिन सोमवार को जब नाबो घुड़साल में था, ग्रामोफोन बजने लगा।

पहले तो किसी ने गौर नहीं किया।बाद में जब घोड़ों के पानी में गच्च उस काले लड़के को गुनगुनाते हुए आते देखा, हमने उससे पूछा, ‘तुम बाहर कैसे गए?’ उसने कहा, ‘दरवाजे से।मैं तो दोपहर से अस्तबल में था।’ ‘ग्रामोफोन बज रहा है।तुमने सुना नहीं?’ हमने उससे कहा और नाबो ने कहा- उसने सुना।और हमने पूछा, ‘चाभी किसने भरी’ और उसने कंधे उचकाते हुए कहा ‘वह लड़की।बहुत दिनों से वही चाभी भर रही है।’

उस दिन तक सबकुछ ऐसे ही चल रहा था, जिस दिन हमने उसे औंधे मुंह पुआल पर गिरा पाया, अस्तबल में बंद, घोड़े की नाल का किनारा उसके माथे पर छपा हुआ।जब हमने उसे कंधों से उठाया तो नाबो ने कहा ‘मैं गिर गया था, एक घोड़े ने मुझे दुलत्ती मारी थी।’ पर उस बात पर किसी का ध्यान नहीं था जो उसने कही।हमारा ध्यान उसकी ठंडी, मृतप्राय आंखों और हरी झाग से भरे मुंह पर था।सारी रात वह रोता रहा, बुखार और सन्निपात में जलता रहा, उस कंघी की बात करता रहा जो अस्तबल के पुआल में गुम गई थी।यह पहला दिन था।

दूसरे दिन जब उसने आंखें खोलीं तो कहा ‘मुझे प्यास लगी है’ और हमने पानी लाकर दिया जो उसने एकबार में पूरा खत्म कर लिया और फिर से दो बार और मांगा।हमने पूछा उसे कैसा लग रहा है।उसने कहा : ‘लगता है किसी घोड़े ने मुझे दुलत्ती मारी है।’ और वह सारा दिन और सारी रात लगातार यही बड़बड़ाता रहा।

आखिर में वह बिस्तर पर बैठ गया।उसने तर्जनी से इशारा किया और कहा कि घोड़ों की टापों से वह सारी रात जागता रहा।पर पिछली रात के पहले उसे बुखार नहीं चढ़ा।अब वह बेहोशी में नहीं था पर लगातार बोलता जा रहा था जबतक उन्होंने उसके मुंह में रूमाल नहीं ठूंस दिया।तब नाबो ने बंद मुंह से ही यह कहते हुए गाना शुरू किया कि अपने कानों के पास वह बंद दरवाजे के पीछे पानी की तलाश में खड़े अंधे घोड़ों की सांसें सुन रहा है।जब हमने उसके मुंह से रूमाल हटा दिया कि वह कुछ खा ले, उसने दीवार की तरफ मुंह कर लिया।हमने सोचा वह फिर से सो गया है और हो सकता है वह थोड़ी देर के लिये सो गया हो।जब जागा तो वह बिस्तर पर नहीं था।उसके पैर बंधे हुए थे और हाथ कमरे में एक ब्रेस बीम से बंधे हुए।इस तरह जकड़ा हुआ नाबो फिर गाने लगा।

… वह जब आया, उसने उसे पहचान लिया।नाबो ने उस आदमी से कहा : ‘तुमको पहले देखा है।’ उस आदमी ने बताया : ‘हर शनिवार तुम चौक में मुझे ताका करते थे।’ और नाबो ने कहा : ‘ठीक, पर मुझे लगा मैंने तुम्हें देखा, पर तुमने मुझे कभी नहीं देखा।’ उस आदमी ने कहा : ‘मैंने तुमको कभी नहीं देखा, पर बाद में जब मैंने आना छोड़ दिया, मुझे लगा किसी ने मुझे शनिवारों को ताकना छोड़ दिया।’ और नाबो ने कहा : ‘तुम वापस कभी नहीं आए पर मैं तीन-चार हफ्तों तक जाता रहा।’ वह आदमी बिना हिले-डुले अपने घुटने थपथपाते हुए : ‘मैं चौक पर वापस नहीं जा सका हालांकि यही एक करने लायक काम था।’ नाबो ने बैठने की कोशिश की, पुआल में अपना सिर हिलाया और तब तक वह ठंडी और कठोर आवाजें सुनता रहा, न जाने कब तक।वह दोबारा सो चुका था।

जबसे घोड़े ने उसे किक मारी थी, यही हो रहा था।और वह हमेशा यह आवाज़ सुनता : ‘हम तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं नाबो।यह जानने का कोई तरीका नहीं कि तुम कितनी देर से सो रहे हो।’

नीग्रो के बैंड में आना छोड़ने के चार हफ्ते बाद, नाबो एक दिन घोड़े की पूंछ की कंघी कर रहा था।पहले उसने ऐसा कभी नहीं किया था।वह सिर्फ खरहरा करता और साथ-साथ गुनगुनाता।परबुधवार को वह बाजार गया था और एक कंघी दिखी थी और उसने खुद से कहा : ‘यह कंघी घोड़ों की पूंछ की कंघी करने के लिए है।’ उसी दिन वह घोड़े वाली सारी घटना घटी, जिसमें घोड़े ने उसे दुलत्ती मारी और जिंदगी भर- करीब दस-पंद्रह साल के लिए- उसे दिग्भ्रमित कर गया।घर में किसी ने कहा : ‘जिंदगी-भर अनर्गल प्रलाप करने और ऐसी हालत होने के बजाय अच्छा होता वह तभी मर गया होता।’

उस दिन के बाद से, जबसे हमने कमरे में बंद किया, किसी ने उसे देखा नहीं।सिर्फ हमें पता था कि वह वहां था।उस कमरे में बंद, और तभी से लड़की ने ग्रामोफोन में चाभी नहीं भरी।पर घर में यह जानने में हमारी रुचि बहुत कम थी।हमने उसे बंद कर दिया, जैसे वह कोई घोड़ा हो, जैसे दुलत्ती ने उसमें आलस भर दिया हो, उसके माथे पर घोड़ों की मूर्खता का, पशुता का ठप्पा लगाकर छोड़ दिया हो।हमने उसे अस्तबल की चारदीवारी में अकेला छोड़ दिया जैसे हमने फैसला कर लिया हो कि वह उस कैद में ही मर जाए, क्योंकि हम ऐसे हृदयहीन नहीं थे कि उसे किसी और तरीके से मारने की सोचते।

चौदह साल ऐसे ही बीत गए, जब तक कोई बच्चा सयाना नहीं हो गया।उसने उसका चेहरा देखने का आग्रह किया।और उसने किवाड़ खोले।

नाबो को फिर से वह आदमी दिखाई दिया।  ‘एक घोड़े ने मुझे दुलत्ती मार दी’, उसने कहा।उस आदमी ने कहा : ‘सदियों से तुम यही कह रहे हो और तब से हम कॉयर में तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।’ नाबो ने फिर से सिर हिलाया, फिर से अपना जख्मी माथा पुआल में गड़ा दिया, और उसे लगा अचानक ही उसे याद आ गया सब कुछ कैसे घटा था- ‘पहली बार ही मैंने किसी घ़ोड़े की पूंछ पर कंघी की थी’, उसने कहा।

उस आदमी ने कहा : ‘हम ऐसा ही चाहते थे, ताकि तुम आते और कॉयर में गाते।’ नाबो ने कहा : ‘कंघी मुझे खरीदनी ही नहीं चाहिए थी।’ और उस आदमी ने कहा : ‘ऐसा तुम्हारे साथ होना ही था।हमने तय किया था कि तुम्हें कंघी मिलेगी और तुम घोड़े की पूंछ में कंघी करोगे।’ नाबो ने कहा : ‘पहले कभी मैं उनके पीछे नहीं खड़ा हुआ था।’ और उस आदमी ने तब भी अधीर न होते हुए शांतभाव से कहा : ‘पर तुम वहां खड़े हुए और घोड़े ने दुलत्ती मारी।तुम्हारे पास कॉयर में आने का सिर्फ यही रास्ता था।’ यह अटूट और रोजाना का वार्तालाप चालू रहा जब तक घर में किसी ने यह नहीं कहा : ‘निश्चय ही पंद्रह साल बीत गए किसी को दरवाजा खोले हुए।’

वह लड़की (वह बड़ी नहीं हुई थी पर तीस से ऊपर की थी और अब उसकी पलकों में उदासी छाने लगी थी) जब भी दरवाजा खुलता, दीवार की ओर घूरती वहीं बैठी रहती थी।कुछ सूंघते हुए उसने मुंह दूसरी ओर घुमाया।और जब उन्होंने दरवाजा बंद किया, तो फिर से कहा : ‘नाबो शांत है।अंदर अब कोई भी हलचल नहीं हो रही।आजकल में ही वह मर जाएगा और हमें इसका पता भी नहीं चलेगा, सिवाय बदबू के।’

किसी ने कहा : ‘हमें खाने से पता लग सकता है, क्योंकि उसने खाना कभी नहीं छोड़ा।वह ऐसे ही ठीक है, बंद, जहां कोई उसे तंग नहीं करता।पीछे की तरफ से उसे काफी रोशनी मिल जाती है।’

कुछ दिन तक ऐसे ही चलता रहा, सिवाय इसके कि लड़की लगातार दरारों से आती ऊष्ण भाप को सूंघती दरवाजे की तरफ देखती रहती।उस सुबह तक वह ऐसे ही बैठी रही, जब हमने बैठक में वही धातु-ध्वनि सुनी जो पंद्रह साल पहने सुनी थी, जब नाबो ग्रामोफोन में चाभी भर रहा था।हम उठे, लैंप जलाया और उस भूले हुए गीत की पहली पंक्ति सुनी।वह उदास गीत जो लंबे अरसे से रेकार्ड में बंद पड़ा था।धुन बजती रही, बेसुरी, और बेसुरी होती हुई जब तक कि हमारी बैठक में पहुंचने तक एक खुश्क आवाज नहीं सुनाई दी, और अभी भी हम रेकार्ड का बजना सुन रहे थे।हमने लड़की को कोने में देखा, ग्रामोफोन के पास उसकी चाभी पकड़े हुए।हमने कुछ नहीं कहा पर हम वापस अपने कमरों में चले गए, यह याद करते हुए कि कभी किसी ने कहा था लड़की जानती है ग्रामोफोन की चाभी कैसे भरी जाती है।यह सोचते हुए हम जागे रहे, धीमी होती हुई धुन को सुनते हुए जो रेकार्ड के टूटे हुए स्प्रिंग के बचे टुकड़े के घूमते रहने से अभी भी आ रही थी।

उनके दरवाजा खोलने से एक दिन पहले जैविक क्षरण की, मृत शरीर की, दुर्गंध आई।जिसने दरवाजा खोला वह चिल्लाया : ‘नाबो! नाबो!’ अंदर से किसी ने जवाब नहीं दिया।दरवाजे के पास खाली प्लेट पड़ी थी।दिन में तीन बार प्लेट अंदर धकेली जाती और तीनों बार खाने के बगैर खाली प्लेट बाहर आती थी।इसी से हम जान पाते थे कि नाबो जीवित है।इसके अलावा और कोई तरीका नहीं था।कोई हलचल नहीं, कोई गाने की आवाज नहीं।

उनके दरवाजा बंद करने के बाद ही ऐसा हुआ होगा कि नाबो ने उस आदमी से कहा होगा : ‘मैं कॉयर नहीं जा सकता।’ उस आदमी ने पूछा, ‘क्यों?’ नाबो ने कहा : ‘क्योंकि मेरे पास जूते नहीं हैं।’ उस आदमी ने अपने पैर उठाते हुए कहा : ‘कोई फर्क नहीं पड़ता।यहां कोई जूते नहीं पहनता।’ नाबो ने उसके सख्त और पीले पड़ गए पैर के उस तलवे को देखा, जो आदमी ने उठा रखे थे। ‘मैं अनंतकाल से यहां तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ’, उस आदमी ने कहा। ‘अभी एक मिनट पहले घोड़े ने मुझे दुलत्ती मारी है’ नाबो ने कहा। ‘मैं जरा मुंह पर पानी के छींटे मारूंगा, फिर उन्हें सैर कराने ले जाऊंगा।’

उस आदमी ने कहा : ‘घोड़ों को तुम्हारी जरूरत नहीं है।अब यहां घोड़े नहीं हैं।यह तुम हो, जिसे अब हमारे साथ चलना चाहिए।’ नाबो ने कहा : ‘घोड़े यहीं होने चाहिए।’

वह थोड़ा उठा, पुआल में हाथ घुसाया कि उस आदमी ने कहा : ‘पिछले पंद्रह सालों से उनकी देख-भाल के लिए यहां कोई नहीं है।’ पर नाबो पुआल के नीचे की जमीन कुरेद रहा था यह कहते हुए : ‘कंघी यहीं-कहीं होगी।’ और उस आदमी ने कहा : ‘पंद्रह साल पहले ही उन्होंने अस्तबल बंद कर दिया था।यहां अब सिर्फ कबाड़ है।’ और नाबो ने कहा : ‘एक ही दोपहर में कबाड़ इकठ्ठा नहीं होता।जब तक कंघी नहीं मिलेगी मैं यहां से हिलूंगा नहीं।’

अगले दिन जब उन्होंने दरवाजा दोबारा बंद किया तो एक बार फिर उन्हें अंदर से भारी कदमों की आहट सुनाई दी।उसके बाद कोई नहीं हिला।किसी ने कुछ नहीं कहा, जब पहली बार चरमराहट सुनी और किसी भारी वजन से दरवाजा टूटने लगा।अंदर से किसी पिंजरे में बंद जानवर का हांफना सुनाई दिया।आखिर में जंग खाए कब्जों के टूटने की आवाज सुनाई दी जब नाबो ने फिर से सिर हिलाया। ‘जब तक मैं कंघी नहीं ढ़ूंढ लूंगा, कॉयर नहीं जाऊंगा’, उसने कहा, कंघी यहीं कहीं होगी।’ और वह पुआल हटाते हुए, जमीन खुरचते हुए कुछ ढ़ूंढ़ने लगा जब तक कि उस आदमी ने यह नहीं कहा, ‘ठीक है नाबो, अगर कॉयर में आने के लिए तुम्हें कंघी के मिलने का इंतज़ार है तो ढूंढो उसे।’ धैर्यपूर्ण गरिमा से स्याह होते चेहरे के साथ वह आगे को झुका।अपना हाथ उसने बैरियर पर रखा और कहा : ‘शुरू करो नाबो।मैं देखूंगा कि कोई तुम्हें रोके नहीं।’

तब दरवाजा खुला और वहशी और विशालकाय नीग्रो, माथे पर कठोर निशान के साथ (बावजूद इसके कि पंद्रह साल बीत चुके थे) फर्नीचर पर लुढ़कता हुआ बाहर आया, मुठ्ठी ताने, खतरनाक अंदाज में, उन्ही रस्सियों के साथ जो पंद्रह साल पहले उन्होंने बांधी थीं (जब वह छोटा अश्वेत लड़का था जिसे घोड़ों की देखभाल के लिए रखा गया था), वह (आंगन तक पहुँचने से पहले) लड़की के पास से गुजरा जो ग्रामोफोन की चाबी हाथ में लिए पिछली रात से वहीं बैठी थी (उसे अचानक एक शब्द याद आया जब उसने बिना बंधनों के उस काली आकृति को देखा) और कंधों से बैठक का आइना तोड़ कर, लड़की की ओर (न ही ग्रामोफोन की तरफ, न आईने में) देखे बिना आंगन तक पहुंचा (अस्तबल तक पहुंचने से पहले), और, चुंधियायी आंखों से सूरज की ओर मुंह करके खड़ा हुआ (जबकि अंदर शीशा टूटने का शोर अभी तक था), आंखों पर पट्टी बंधे घोड़े की तरह दिशाहीन-सा अस्तबल के दरवाजे की तरफ दौड़ा जो पंद्रह सालों की कैद ने उसकी याद से मिटा दिया था पर सहज अनुभूति से नहीं (अतीत के उस दिन से जब उसने घोड़े की पूंछ पर कंघी की थी और बाकी की सारी जिंदगी के लिए विक्षिप्तप्रायः होकर रह गया था), आंखों पर पट्टी बंधे सांड की तरह पीछे लैंपों से भरे कमरे में तबाही, विघटन व अस्त-व्यस्तता छोड़ते हुए पिछले आंगन तक पहुंचा (तब भी अस्तबल को न ढूंढ़ पाते हुए) और उसी अत्यधिक रोष के साथ जमीन खुरचने लगा जिससे उसने आईने तोड़े थे, शायद यह सोचकर कि जमीन खुरचने से घोड़ी के पेशाब की बू फिर से आने लगेगी।

आखिर में वह अस्तबल के दरवाजे तक नहीं पहुंचा।वह मुंह के बल अंदर गिरा, शायद आसन्न मृत्यु से पीड़ित, उस पाशविकता से भ्रमित जिसने आधा सेकंड पहले उस लड़की का गाना सुनने तक से असमर्थ कर दिया था, जिसने उसके आने की आहट सुनते ही उसे याद करते और लार गिराते हुए, पर कुर्सी पर बैठे-बैठे ग्रामोफोन की चाभी उठाई थी और उसी एक शब्द को याद किया, जो उसने कहना सीखा था और वह बैठक से चिल्लाई थी : ‘नाबो! नाबो!’

संपर्क अनुवादक : मंजुला वालिया, हाउस नं.1046, सेक्टर 37 बी, चंडीगढ़160036, मो.9872374800