सुपरिचित कवि। प्रमुख कृतियां अंतस की खुरचन’, ‘आविर्भावऔर संस्मरणात्मक गद्य की एक पुस्तक। साहित्यिक संस्थाओं में विशेष रूप से सक्रिय।

प्रेम में पेड़

1.
दो सांसों को
साथ- साथ गिरते देखा है कभी
अगर नहीं, तो
गुलमोहर को गिरते देखो
लगेगा ईश्वर भी प्रेम में
फूल बन जाने की इच्छा रखता होगा

उसे पास जाकर छू कर देखो
एक दूजे में गुंथे
पंचमुखी पाश फैलाए
फूल दिखेंगे

यह भी हो सके तो
पेड़ों को आपस में लिपटे देखो

प्रेम में डूबे
सांप से ज्यादा आग लिए
अंतिम सांस तक
आकुंठ प्रेम में लिपटे पेड़ मिलेंगे

कहीं पढ़ रहा था एक रोज
एक कवि और उसका प्रेम
देखते-देखते
ईश्वर की आंखों में समा गए
फिर सुना
कि प्रेम में आदम
पेड़ या फूल बन जाते हैं

फिर पता चला
जब फूल झरते हैं
कवि ईश्वर की बंद पलक देख्रकर मुस्कराता है
और कविता अजर जड़ बन जाती है
लेती है जन्म बार-बार
करती है खुद को पुनर्नवा।

2.
मेरी छोटी सी दुनिया में, तुम्हारे पांव पड़ते ही
स्वर्ग बलाएं लेता है
चांद टकटकी लगा कर ताकता है

तुम्हारे आते ही मन के पोखर में
कुम्हलाए कमल खिल उठते हैं
उजास यूं फैलता है
कि स्याह साये लरजकर छुप जाएं
तुम्हारी हथेली इतनी बड़ी है
कि अकसर समय को ढंक देती है

और जब भी मैं मुट्ठी बंद करता हूँ
तुम गुदगुदा देती हो
अरबी खजूर सी मिठास
और शहद-सा ठहराव लिए
जब तुम हँसती हो
कृष्णपक्ष का हंसिया-सा चांद
मेरी पीठ पर टहलता है

हम नदी की दो धाराओं की तरह मिलेंगे
हम चांद बनकर समंदर में डूबेंगे
हम गोंद बन
छाल की नमी में गुम रहेंगे
हम पराग बन फूलों को बोसे देंगे
और यूं हर बार उगेंगे
प्रेम में पेड़ की पत्तियों की तरह…

3.
इंतजार में ख़त
बरसाती झरनों से कम नहीं लगता
प्रेम में भूरी आंखें
हरी और फिर अंगूरी हो जाती हैं
काली जुल्फें सुनहली
फिर प्याजी हो जाती हैं
चिराग की लौ को
नीला होते हुए देखा
तो लगा
इंतजार भी रंग यूं ही बदलता होगा

दिल ने चुपके से कहा
इंतज़ार में मन
तू जिप्सी बन जा

देखा तो इंतजार में
कुछ पेड़ खुद उग आए
और कुछ को मैंने उगाया
इस इंतज़ार में
कि तुम जब भी लौटो
तुम्हें दुनिया की सबसे ठंडी छांव मिले
यूं अब तक
कविता में मैंने पूर्ण विराम नहीं लगाया…

4.
जब वह चलती
आंचल का छोर लपेटे
हरे बांस की टहनी-सी
लहराते चलती

प्रेम कहानी सुनाता
तो वह सपने देखती
वह उसे यूं देखते हुए देखता
जैसे डोंगी में लेटकर आसमान देख रहा हो
तब वह उसे यूं चाहती
जैसे चंचल नदी
पत्थरों से लिपटकर प्यार करती है
जैसे चांद को झुलाकर
लहरों को संतोष मिलता है

चांद की बात करने
और चांद को जानने के बीच टहलती
वह ताउम्र शीशम की अमरबेल बनी रही

सूखी अमरबेल भी पेड़ का साथ नहीं छोड़ती
जानती थी वह
पर समझ नहीं पाई
कि प्रेम सोखता है या सींचता है?

5.
घने पेड़ों की हरियाली के बीच
एक ठूंठ पेड़ है
पत्ता एक भी नहीं बचा
फिर भी हर शाम
पक्षियों का झुंड उसकी डालियों पर
पत्तियों की तरह सज जाता है

हरे पेड़ सोचते हैं
कि इस ठूंठ में क्या बात है
उम्र की अंतिम ढलान पर
सांसें चुग रहा है फिर भी
सारी चिड़ियां उसी दरख़्त पर
अपने पंख को विराम देती हैं

कई ऐसे ही ठूंठ थे
हम सब बच्चे उन पक्षियों की तरह
उनके कंधे, गोद, सिर
कहीं भी बैठ जाते
मधुमक्खियों की तरह
आपस में चिपक जाते
ख़ूब गीत गाते
झूले पर झूलने वाले गीत

मदमस्त चिंताओं को भूलने वाले गीत
आज छज्जे से नीचे ताकता हूँ
चौकीदार से पूछता हूँ
ठूंठ पेड़ कहीं नहीं दिख रहा
चिड़ियां भी नहीं दिख रहीं
जवाब का उभरता प्रतिबिंब
समाज के दर्पण पर
सोचता हूँ
वह कमजोर ठूंठ क्या सच में
बच्चों के लिए
ख़तरा बन गया था…

6.
ज़मीन पर गिरा
चूहे-सा दिखता एक आम
जान उसमें अब भी बची है
कौवे नोंच-नोंच कर खा रहे हैं

जन्म लेता है फिर से वह
जब कौवे उसकी डार पर
टेर रहे हैं कांव-कांव।

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