युवा कवि। विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। संप्रति अध्यापन।
परित्यक्त मकान
उस परित्यक्त मकान में कैद हैं
हजारों सपने
कैद होकर रह गई हैं
बच्चों की किलकारियां
पिछले कई वर्षों से
उस परित्यक्त मकान पर
अब उग आए हैं घास
किसी की यादों की काई
पसर गई है दीवार पर
पुरानी ईंटों से आती है आवाज
जैसे कि वे बुला रही हों
वापस उस आंगन में जहां
तुम्हारे पुरखों की यादें
आंखें बिछाए बैठी रहती हैं
जहां गूंजता रहता है विवाह गीत
लौट चलो गांव के उस परित्यक्त मकान में
जहां किसी अलमारी में पड़ा है
तुम्हारे बचपन की फोटो एलबम
जिसमें तुम दिखते बिलकुल नटखट अंदाज में
वहां एक और आलमारी है
जिसमें कभी रहता था मां का शृंगारदान
जिसके पीछे तुम छुपाया करते थे
अपना खेलने का सामान
आज भी है वह बरगद का पेड़
जिसकी छांव में तुम खेलते थे
कंचे और गुल्ली-डंडा
सावन में जिसपर पड़ता था झूला
और गांव की कुंवारी लड़कियां झूलती थीं
सावन के गीत गाते हुए
आज भी उस रसोई में महक रही है
मां के हाथों की बनी रोटी
आज भी सलामत है
माटी का वह चूल्हा
जिसपर मां बड़े प्यार से बनाती थी
मांड़-भात
तुम आओगे तो एक बार फिर
खिल उठेगा यह मकान
तुम आओगे तो फिर मुस्कुराएगा बूढ़ा बरगद
लौट चलो
परित्यक्त मकान की ओर।
संपर्क : सलेमपुर, देवरिया-274509, उत्तर प्रदेश मो.6394893753