वरिष्ठ लेखक।प्रमुख कृतियां :  गुरु कुम्हार,शिष कुंभ’, ‘प्रेमचंद की वैचारिक संवेदना’, ‘जस देखा, तस लेखा’, ‘साहित्य, समाज और राजनीतितथा सहमत असहमत

एक

विदा होते वक्त जब
सीने से लगाया गया
तो मैं बिखरने लगा
हृदय की स्थिति ठीक नहीं थी
मैं लंबे समय से
किसी के सीने से लगा ही नहीं
यह एहसास मुल्तबी था बहुत दिनों से
मैंने महसूस किया
कि अगर जल्द अलग नहीं हुआ
तो आंखें वैसी ही नहीं रहेंगी, जैसी हैं
मैंने अपने को खींचा
और खुद को छिपा लिया
मैं वैसा ही बन गया
जैसा था
वैसे देर तक भींगे हुए हृदय को संभालता रहा।

दो

जब वहां से चल पड़ा
तो सड़क पर गाड़ियां थीं, धूल थी
और डर था कि
कहीं भटक न जाऊं
यह डर बहुत गहरा नहीं था
क्योंकि
जीपीएस से सीट के पीछे बैठे हुए मित्र
ड्राइवर को रास्ता दिखा रहे थे
मैंने सड़क पर बिखरे जन जीवन
घर और लोगों को देखा तो लगा
कि देश का जीपीएस ही बिखर गया है
मुझे यह सोचकर अच्छा नहीं लगा
इतना होने पर मैं थिर हो चुका था
भीगे हुए हृदय का पानी चू गया था।

तीन

तीन दिनों से खट्टे-मीठे रिश्तों ने
मुझे चारों ओर से घेर लिया था
स्मृतियां आ नहीं रही थीं सिर्फ
दुहराईं जा रही थीं
कथनों, ठहाकों और उम्मीदों के बीच
वे स्मृतियां खिल आई थीं
जनवरी के महीने ठंड भरे होते हैं
लेकिन ठंड के एहसास का
नामोनिशान न था
देर रात भीगता रहा सबकुछ
जबकि कोई ब्लड प्रेशर में था
कोई मधुमेह में
किसी के टखने दम तोड़ रहे थे
कोई सीढ़ियों पर चढ़ते हुए हांफ-हांफ उठता था
और आदत ऐसी हो गई थी
कि खानों में भी दवाइयां ढूंढता
क्या खाने से क्या होगा
और क्या खाने से क्या नहीं होगा
ये थके हुए लोग थे
जो रास्ता ढूंढ रहे थे ताकि वे थकें नहीं।

चार

जहां मैं रहता हूँ
वहां तालाब है, पेड़ है, खुला मैदान भी है
एक मंदिर है जिसमें लोग जाते हैं
अपना-अपना प्रस्ताव लेकर
मंदिर उनके प्रस्तावों पर कुछ न कुछ
निर्णय लेता होगा
ऐसा भरोसा है
जो मंदिर से प्यार नहीं करता
वह रिश्तों से ही खुद को भरना चाहता है
रिश्तों का एक-एक कोना टूट रहा है
आत्मीय उठ कर
चले जाते हैं जब अज्ञात देश
हम सब मिलते हैं
और कहते हैं- फिर मिलेंगे
यह सोचते हुए कि
पता नहीं मिलना हो या न हो।

पांच

कहने को बहुत कुछ रह नहीं जाता है
घिस जाता है बहुत कुछ
शिकायतें भी ठहर जाती हैं
अतीत के प्रसंगों को दुहरा कर
जिजीविषा की तलाश होती है
अक्षय यहां नहीं है कुछ भी
लेकिन अक्षय की तलाश बनी रहती है-
वे अब अपने घरों में क्या कर रहे होंगे?
भारी मन लिए
जीने की कोशिश कर रहे होंगे
या किसी अन्य को
जीने की तरकीब बता रहे होंगे
शायद वैसा ही कुछ
जैसा सब लोग करते हैं
मैं कल जो था, वह आज नहीं हूँ
मुझसे जो विदा हुए
वे भी वैसे ही होंगे जैसा मैं हूँ
संसार ससर रहा है
जीवन भी।

संपर्क :विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर/ ईमेल  : yogendratnb@gmail.com