अनुवाद –प्रीति प्रकाश

विभिन्न पत्रिकाओं पर रचनाएं प्रकाशित।बिहार सरकार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण पदाधिकारी के पद पर कार्यरत।

चिमामंदा न्गोची आदिची

नाइजीरिया की कथाकार और लेखिका।२००८ में ‘मैक आर्थर फेलोशिप’।टाइम्स लिटरेरी फेस्टिवल में सबसे प्रभावशाली लेखकों में शुमार।उन्हें अफ्रीकन साहित्य को एक नई ऊर्जा देने का श्रेय दिया जाता है।वर्तमान में वह अमेरिका में रहती हैं।

ओकोलोमा मेरे बचपन के सबसे अच्छे दोस्तों में से एक था।वह मेरी ही गली में रहता था और एक बड़े भाई की तरह मेरा ख्याल रखता था।उस समय हमारा रिश्ता कुछ ऐसा था कि अगर मैं किसी लड़के को पसंद करती तो सबसे पहले मुझे ओकोलोमा की राय लेनी पड़ती थी।वह बेहद खुशमिजाज और जहीन भी था।मुझे याद है कि उसके जूते काऊबॉय की तरह होते थे, जो आगे की तरफ से नुकीले होते थे।दिसंबर २००५ में दक्षिणी नाइजीरिया में हुए विमान दुर्घटना में ओकोलोमा की मौत हो गई।उसकी मौत के बाद मैंने कैसा महसूस किया, यह बताना अब भी मेरे लिए बहुत मुश्किल है।ओकोलोमा वह इनसान था जिससे मैं लड़ सकती थी, जिसके साथ हँस सकती थी और जिससे सच में, मैं बात कर सकती थी।इसके साथ ही वह पहला इनसान था जिसने मुझे फेमिनिस्ट कहा था।

मैं चौदह साल की थी।हम उसके घर पर थे और अब तक पढ़ी गई किताबों से मिले आधे-अधूरे ज्ञान के आधार पर बहस कर रहे थे।मुझे ठीक से याद नहीं कि हमारी वह बहस किस बारे में थी, पर मुझे याद है कि जब मैं तर्क पर तर्क दिए जा रही थी तभी ओकोलोमा ने मेरी तरफ देखा और अचानक से कहा- ‘तुम्हें पता है, तुम फेमिनिस्ट हो।’

उसने ऐसा तारीफ के लहजे में नहीं कहा था।ऐसा मैं उसके टोन से बता सकती हूँ।उसके बोलने का लहजा ऐसा था जिसमें लोग कहते हैं, ‘तुम आतंकवाद के हिमायती हो।तब मुझे ठीकठीक मालूम नहीं था कि फेमिनिस्ट शब्द का मतलब क्या होता है।इसलिए मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपनी बहस जारी रखी।उस दिन अपने घर वापस आने के बाद मैंने जो काम सबसे पहले किया वह था डिक्शनरी निकाल कर फेमिनिस्ट शब्द का मतलब ढूंढना।

इसके कई वर्षों बाद एक दूसरी घटना हुई।२००३ में मैंने एक उपन्यास लिखा ‘पर्पल हिबिस्कस’।इसमें एक ऐसे आदमी की कहानी थी जो अपनी पत्नी को पीटता है और जिसका अंत बहुत बुरा होता है।जब मैं नाइजीरिया में अपने इस उपन्यास को प्रोमोट कर रही थी, एक पत्रकार ने, जो दिखने में अच्छा- भला था, मुझसे कहा कि वह मुझे कुछ सलाह देना चाहता है (जैसा कि आप जानते हैं, नाइजीरियन लोग बिना मांगे सलाह देने में बहुत तेज होते हैं)।उसने कहा कि लोग मेरे उपन्यास को फेमिनिस्ट कह रहे हैं और उसकी मुझे सलाह है कि मुझे खुद को कभी फेमिनिस्ट नहीं कहना चाहिए।क्योंकि फेमिनिस्ट महिलाएं दुखी रहने वाली महिलाएं होती हैं और उन्हें अच्छा पति नहीं मिलता है।

इसलिए मैंने फैसला किया मैं खुद को एक सुखी फेमिनिस्ट कहूंगी।

लगभग इसी समय एक और घटना घटी।एक अकादमिक नाइजीरियन महिला ने मुझसे कहा कि फेमिनिज्म हमारी संस्कृति में नहीं था।फेमिनिज्म एक गैर-अफ्रीकी विचार है और मैं खुद को फेमिनिस्ट इसलिए कहती हूँ, क्योंकि मैं पाश्चात्य किताबों से प्रभावित हो गई हूँ (इस बात को सुनकर मुझे हँसी आई, क्योंकि जब मैंने पढ़ने की शुरुआत की थी तब जानबूझकर शुरुआत में अन्फेमिनिस्ट किताबों को पढ़ा था।सोलह साल की उम्र के पहले तक मैंने मिल्स और बून्स के लगभग सभी रोमांटिक किताबों को पढ़ लिया था और जब भी मैं उन किताबों को पढ़ने के लिए उठाती, जिन्हें ‘क्लासिक फेमिनिस्ट टेक्स्ट’ कहा जाता है तब मैं ऊब जाती थी और बड़ी मुश्किल से उसे पूरा पढ़ पाती थी।)

खैर, अब चूंकि फेमिनिज्म लोगों की नजर में गैर-अफ्रीकी हो गया था, इसलिए मैंने फैसला किया कि अब मैं खुद को एक ‘सुखी अफ्रीकी फेमिनिस्ट’ कहूंगी।तब मेरे एक अजीज दोस्त ने मुझसे कहा कि अगर मैं खुद को फेमिनिस्ट कहती हूँ तो इसका मतलब होता है कि मैं मर्दों से नफरत करती हूँ।इसलिए मैंने फैसला किया कि खुद को एक सुखी अफ्रीकी फेमिनिस्ट कहूंगी जो मर्दों से नफरत नहीं करती है और जिसे खुद के लिए लिप ग्लॉस लगाना और हाई हील्स पहनना पसंद है न कि मर्दों के लिए।

जाहिर है ये बातें बेवकूफाना है, लेकिन ये दिखाती हैं कि फेमिनिस्ट शब्द बहुत भारीभरकम और नकारात्मकता से भरपूर है।जैसे अगर तुम फेमिनिस्ट हो तो तुम मर्दों से नफरत करती होगी, तुम्हें ब्रा से परहेज होगा, तुम अफ्रीकन संस्कृति से इनकार करती होगी, तुम हमेशा एक खास तरह की भूमिका में रहोगी, तुम्हें मेकअप लगाना पसंद नहीं होगा, तुम हेयर रिमूव नहीं करती होगी, तुम हमेशा गुस्से में होगी और तुम्हारा मजाक करने का मन नहीं करता होगा, तुम डिओडोरेंट नहीं लगाती होगी आदि आदि।

अब मैं अपने बचपन की एक कहानी सुनाती हूँ।जब मैं दक्षिणी पूर्वी नाइजीरिया के नुसुका शहर में प्राथमिक स्कूल में पढ़ती थी तब एक बार सत्र की शुरुआत में मेरी टीचर ने कहा कि वह क्लास टेस्ट लेगी और टेस्ट में जिसे भी सबसे ज्यादा नंबर मिलेंगे उसे वह क्लास मॉनीटर बनाएगी।उस समय क्लास मॉनीटर बनना एक बड़ी बात थी।अगर कोई बच्चा क्लास मॉनीटर बनता तो उसे बात करने वाले बच्चों का नाम लिखने का मौका मिलता जो एक बड़ी बात थी।पर इसके साथ ही मेरे क्लास टीचर तब उसे बेंत की एक छड़ी भी देते जिसे बातूनी बच्चों पर नजर रखने के लिए क्लास में घूमते समय हाथ में रखा जा सकता था।यह अलग बात है कि उस बेंत का असल में इस्तेमाल करने की इजाजत मॉनीटर को भी नहीं मिलती।फिर भी मुझ जैसी नौ साल की बच्ची के लिए यह बहुत ही मजेदार बात थी।तो मैं लग गई क्लास मॉनीटर  बनने की अपनी कोशिशों में।मैंने इम्तिहान में सबसे ज्यादा नंबर पाए।

लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ जब मेरी टीचर ने कहा कि क्लास मॉनीटर कोई लड़का ही बन सकता है।यह बात वह पहले बताना भूल गई थी, क्योंकि उन्हें इसमें बताने जैसा कुछ भी नहीं लगा था, यह तो जाहिर सी बात थी।इसलिए अब जो लड़का दूसरे नंबर पर था उसे मॉनीटर बनना था।अब यहां एक मजेदार बात यह हुई कि वह एक बेहद शरीफ किस्म का विनम्र लड़का था और उसकी क्लास मॉनीटर बनने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी।जबकि मैं ऐसा करना चाहती थी।पर चूंकि मैं लड़की थी और वह लड़का था इसलिए वही क्लास मॉनीटर बना।मैं इस बात को कभी नहीं भूल सकी।

अगर हम कोई काम बार-बार करते हैं तो वह एक सामान्य सी परिघटना बन जाती है।अगर हम एक ही चीज बार-बार देखते हैं तो वह हमारे लिए एक सामान्य सा दृश्य बन जाता है।अगर सिर्फ लड़कों को ही क्लास मॉनीटर बनाया जाता है तो हमारे दिमाग में यह ख्याल अनायास ही बैठ जाता है कि क्लास मॉनीटर किसी लड़के को ही बनना चाहिए।अगर हम संस्थानों के निदेशक के रूप में भी सिर्फ पुरुषों को देखते हैं तो धीरे-धीरे हम सामान्य रूप से इस बात को मान लेते हैं कि संस्थानों के निदेशक पुरुष ही होते हैं।

मैं यह सोचने की गलती हमेशा करती हूँ कि हर वह बात जो मेरे लिए बहुत सामान्य सी है वह बाकी सबके लिए भी सामान्य सी होगी।अब जैसे मेरे दोस्त लुईस को ही लीजिए।वह बुद्धिमान है, प्रगतिशील है।हम एक बार बात कर रहे थे और उसने मुझसे कहा कि वह मेरी यह बात नहीं समझ पाता है कि महिलाओं के लिए परिस्थितियां अलग और मुश्किल कैसे हैं? हो सकता है कि पहले ऐसा रहा हो, लेकिन अब? अब तो औरतों के लिए सब ठीक है।मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि महिलाओं की समस्याओं के संबंध में जो बात इतनी लाजिमी सी है, उसे लुईस देख क्यों नहीं पा रहा है?

 खैर, मैं नाइजीरिया जाना पसंद करती हूँ और वहां लागोस में, जो वहां का सबसे बड़ा शहर और व्यापारिक केंद्र है, खूब समय गुजारती हूँ।कभी-कभी शाम के वक्त जब पारा थोड़ा नीचे गिर जाता है और शहर थोड़ा सुस्ताने लगता है, मैं अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ कै़फे या रेस्टोरेंट भी जाती हूँ।ऐसी ही एक शाम को लुईस और मैं अपने दोस्तों के साथ बाहर थे।

लागोस में एक बड़ा अच्छा इंतजाम है।कुछ युवा लड़के, जो कुछ बड़ी इमारतों के आस-पास ही रहते हैं, आपको बड़े नाटकीय ढंग से कार पार्क करने में मदद करते हैं।लागोस, लगभग बीस मिलियन आबादी वाला मेट्रोपोलिस शहर है यानी एक ऐसा शहर जहां लंदन से ज्यादा ऊर्जा है, जहां न्यूयॉर्क से ज्यादा उद्यमिता है और जहां चारों तरफ से लोग एक बेहतर जिंदगी की तलाश में आते हैं, और जैसा कि बड़े शहरों में होता है शाम के समय पार्किंग ढूंढ पाना लागोस में भी बेहद मुश्किल काम है।तो ये युवा पार्किंग की जगह तलाश कर और आपको यह भरोसा दिलाकर कि वह आपकी कार की देखभाल करेंगे, थोड़ा पैसा बनाते हैं।हमारी कार के लिए भी जिस बंदे ने जगह तलाश की उससे मैं बहुत प्रभावित हुई और इसलिए जब हम निकलने लगे, मैंने उसे एक टिप देने का फैसला किया।मैंने अपना बैग खोला, उसमें हाथ डाले, पैसे निकाले और उस लड़के को दिया।और वह लड़का जो मुझसे पैसे लेकर खुश और एहसानमंद हुआ, उसने लुईस की तरफ देखा और उससे कहा- ‘थैंक यू सर।’

लुईस ने मेरी तरफ देखा और हैरानी से बोलाये मुझे थैंक यू क्यों बोल रहा है, मैंने तो उसे पैसे नहीं दिए हैं।और ठीक तभी मैंने लुईस के चेहरे पर उभर आए उस तीखे एहसास को देखा।उस बंदे को, जिसने कार पार्क करने में हमारी मदद की।उसे यह भरोसा था कि मेरे पास जो भी पैसे हैं वो असलियत में लुईस के हैं, क्योंकि लुईस एक पुरुष है और मैं एक महिला।

औरत और मर्द बहुत अलग होते हैं।उनके हारमोंस अलग होते हैं, उनके यौनिक अंग अलग होते हैं और साथ ही उनकी जैविक क्षमताएं भी अलग होती हैं।औरतें बच्चों को जन्म देती हैं, मर्द नहीं।मर्दों के शरीर में ज्यादा टेस्टटेरोन होता है जो उसे औरतों के मुकाबले शारीरिक रूप से ज्यादा मजबूत बनाता है।दुनिया में मर्दों से थोड़ी ज्यादा औरतें हैं।दुनिया की कुल आबादी का लगभग ५२ प्रतिशत औरतें हैं, लेकिन पद और प्रतिष्ठा वाले ज्यादातर ओहदों पर मर्द ही काबिज हैं।केन्या की दिवंगत नोबल शांति पुरस्कार विजेता वांगारी मथाई ने इसे बड़े आसान शब्दों में ऐसे समझाया था कि जैसे-जैसे आप ऊपर की तरफ जाते हैं वहां औरतें कम होती जाती हैं।

हाल ही में हुए अमरीकन चुनाव में ‘लिली लेडबेटर’ क़ानून के बारे में हम सबने सुना है।अगर हम इस सुंदर से नाम के पीछे के गहरे मायनों की तलाश करते हैं तो हम पाते हैं कि अमेरिका में समान योग्यता वाली महिलाओं और पुरुषों को समान काम करने पर भी पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा पैसे मिलते हैं, क्योंकि वे पुरुष हैं।

सीधे शब्दों में कहें तो पुरुष दुनिया पर राज करते हैं।एक हजार साल पहले तक तो यह बात थोड़ी ठीक भी थी, क्योंकि तब दुनिया ऐसी थी जहां शारीरिक शक्ति को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती थी और तब शारीरिक रूप से सबसे मजबूत इनसान ही नेतृत्व कर सकता था और सामान्य रूप से पुरुष ही महिलाओं की तुलना में शारीरिक रूप से ज्यादा मजबूत होते थे।(हालांकि अपवादों की कमी यहां भी नहीं है)।पर आज हम एक अलहदा दुनिया में रहते हैं।आज वही नेतृत्व के योग्य है जो शारीरिक रूप से मजबूत नहीं, बल्कि ज्यादा जहीन, ज्यादा जानकार और ज्यादा रचनात्मक होता है।समय बदल गया है।बेहतरी के लिए बदल गया है।लेकिन जेंडर को लेकर हमारी समझ अब तक ज्यादा नहीं बदली है।

ज्यादा पुरानी बात नहीं है, मैं एक नाइजीरियन होटल की लॉबी से गुजर रही थी, जब एक गार्ड ने मुझे रोका और मुझसे बहुत अजीब से सवाल पूछे।जैसे मैं जिस व्यक्ति से मिलने जा रही हूँ उसका नाम और उसके कमरे का नंबर क्या है? क्या मैं उस व्यक्ति को जानती हूँ? क्या मैं उसे अपना की-कार्ड दिखाकर यह साबित कर सकती हूँ कि मैं होटल में गेस्ट ही हूँ? ऐसा उसने इसलिए पूछा क्योंकि नाइजीरिया में अगर कोई औरत अकेले होटल में जा रही होती है तो लोग उसे देखकर सामान्य तौर पर यह अंदाजा लगा लेते हैं कि वह सेक्स वर्कर होगी।क्योंकि एक अकेली नाइजीरियन महिला होटल में खुद के लिए भुगतान करके अपना कमरा नहीं बुक करती है।लेकिन एक आदमी जो उसी होटल की लॉबी में नजर आता है उसे गार्ड द्वारा परेशान नहीं किया जाता है।क्योंकि उसके बारे में यह अनुमान लगाया जाता है कि वह कुछ सही और वैध काम के लिए ही आया होगा। (हालांकि मुझे यह बात आज तक नहीं समझ आई कि ये होटल सेक्स वर्कर की मांग के बजाय उनकी आपूर्ति पर इतना ध्यान क्यों देते हैं?)

लागोस में मैं कई अच्छे क्लबऔर बारमें अकेले नहीं जा सकती हूँ।वे आपको अंदर आने नहीं देंगे, अगर आप एक अकेली औरत हैं।आपके साथ निश्चित तौर पर एक पुरुष होना चाहिए।और इसलिए मेरे कई पुरुष मित्र हैं जो ऐसे क्लब में किसी अनजान महिला की बाहों में बाहें डालकर जाते हैं, क्योंकि उस अनजान महिला के पास उनकी मदद लेने के सिवा और कोई विकल्प नहीं होता है।

हर बार जब मैं किसी नाइजीरियन होटल में अपने पुरुष मित्रों के साथ जाती हूँ तो वेटर उनका अभिवादन करता है, मेरा नहीं।क्योंकि वेटर भी ज्यादातर उस समाज से आते हैं जिसमें सिखाया जाता है कि पुरुष औरतों से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, और मैं जानती हूँ कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती।लेकिन मैं यह भी जानती हूँ कि किसी बात को बौद्धिक रूप से जानना एक बात होती है और उसे भावनात्मक रूप से महसूस करना दूसरी बात होती है।हर बार जब वह मुझे नजरअंदाज करते हैं, मुझे मेरा वजूद मिटता हुआ सा महसूस होता है और मुझे बहुत बुरा लगता है।मैं उन्हें यह कहना चाहती हूँ कि मैं भी अपने पुरुष मित्रों की तरह इनसान ही हूँ और मैं भी उतने ही सम्मान की हकदार हूँ।ये छोटी चीजें हैं, लेकिन कभी-कभी ये छोटी चीजें ही जहर लगती हैं।

थोड़े दिन पहले की बात है, मैंने एक आलेख लिखा था जो लागोस में एक युवा महिला होने के बारे में थी।मेरे एक जानने वाले ने कहा कि यह आलेख काफी गुस्से में लिखा गया लगता है और मुझे इसे इतना आक्रामक ढंग से नहीं लिखना चाहिए था।पर मैंने इस बात के लिए बिलकुल भी अफसोस जाहिर नहीं किया।हां, यह आक्रामक आलेख था, लेकिन जेंडर का जैसा स्वरूप आजकल समाज में नजर आता है वह बिलकुल अन्यायपूर्ण है।मुझे इस बात को लेकर गुस्सा है।हम सबके मन में इसको लेकर गुस्सा होना चाहिए।गुस्से का सकारात्मक बदलाव लाने का एक लंबा इतिहास रहा है।पर मुझे उम्मीद है, इनसानी क्षमता में यकीन भी है कि वह खुद को बेहतरी के लिए बदलेगा।पर बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, मुझे अपने उस परिचित के टोन से एक चेतावनी भी महसूस हुई।और मैं जानती हूँ कि उसकी टिप्पणी जितना आलेख के बारे में थी, उतनी ही मेरे बारे में भी।उनके टोन से मैं यह समझ रही थी कि गुस्सा औरतों के लिए अच्छा नहीं होता है।अगर आप एक औरत हैं तो आपसे यह उम्मीद की जाती है कि आप सार्वजनिक तौर पर गुस्से का इजहार नहीं करेंगी, क्योंकि यह ठीक नहीं है।

मेरी एक अमेरिकन महिला दोस्त है जिसने एक पुरुष से मैनेजर का पदभार ग्रहण किया है।उसके पूर्ववर्ती मैनेजर की छवि एक ‘टफ गो गेटर’ की है, वह कड़े शब्दों में बात करता था और विशेष तौर पर टाइम शीट को साइन करने के समय बहुत स्ट्रिक्ट हो जाता था।उस महिला ने अपना पदभार ग्रहण किया और उतना ही टफ होने की कोशिश की, लेकिन शायद वह थोड़ी नरम ही थी।क्योंकि वह हमेशा यह मानती थी और यह कहती भी थी कि कर्मचारियों के परिवार होते हैं।अपनी इस नई नियुक्ति के एक सप्ताह के भीतर ही उसने एक टाइम शीट की गड़बड़ी के बारे में एक कर्मचारी को अनुशासित करने की कोशिश की जैसा कि उसके पूर्ववर्ती बॉस करते थे।लेकिन तब उस कर्मचारी ने टॉप मैनेजमेंट को इस कार्यप्रणाली की शिकायत कर दी। ‘वह आक्रामक है और उसके साथ काम करना मुश्किल है’, ऐसा उस कर्मचारी ने मैनेजमेंट को बताया।दूसरे कर्मचारियों ने भी इस बात पर अपनी सहमति दर्ज की।एक ने तो यहां तक कह दिया कि उन्हें उम्मीद थी कि वह अपने काम से ‘वुमन टच’ दिखाएगी, लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।उनमें से किसी को यह बात महसूस नहीं हुई कि वह वैसा ही काम कर रही है जैसा करने पर उसके पूर्ववर्ती बॉस की प्रशंसा की जाती थी।

मेरी एक और भी दोस्त है जो एक अमेरिकन महिला है।वह एडवरटाइजिंग फील्ड में काम करती है और काफी अच्छी सैलरी पाती है।वह अपने टीम में दो महिलाओं में से एक है।एक बार एक मीटिंग में उसने कहा कि वह अपने बॉस से (जो उनके टीम की दूसरी महिला है) अपमानित महसूस करती है, क्योंकि वह उसकी सलाह को नजरअंदाज करती है और अगर वही सलाह किसी पुरुष द्वारा दी जाती है तो वह उसकी तारीफ करती है।एक मीटिंग में उसके इसी तरह के बर्ताव के खिलाफ वह बोलना चाहती थी, अपने बॉस के फैसले को चुनौती देना चाहती थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई।इसके बजाय मीटिंग के बाद वह बाथरूम में गई और वहां जाकर जी भर कर रोई।उसके बाद अपने मन की भड़ास निकालने के लिए उसने मुझे बुलाया।लेकिन उसने मीटिंग में कुछ नहीं कहा, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसकी आक्रामक छवि बने।

मुझे जिस एक बात ने सबसे ज्यादा परेशान किया, वह यह है कि मेरी वह दोस्त और उसके जैसे और कई अमेरिकन महिला दोस्त इस बात में इतनी ज्यादा रुचि क्यों दिखाते हैं कि उन्हें पसंद किया जाए? उनकी परवरिश किस तरह से की गई है जो उनके लिए लोगों द्वारा पसंद किया जाना इतना जरूरी है।यह पसंद किया जाना उन्हें न तो आक्रामक होने देता है और न ही अपनी असहमति का पुरजोर तरीके से इजहार करने देता है।

हम लड़कियों पर कितना समय जाया करते हैं, उन्हें यह सिखाते हुए कि वे इस बात की चिंता करें कि लड़के उनके बारे में क्या सोचते हैं? लेकिन इसके उलट हम लड़कों को तो कुछ नहीं सिखाते।हम काफी समय लड़कियों को यह सिखाते हुए बिताते हैं कि उसे गुस्सैल नहीं होना चाहिए, आक्रामक नहीं होना चाहिए या सख्त नहीं होना चाहिए क्योंक वह बुरी बात है, लेकिन फिर हम लड़कों की तरफ मुड़ते हैं और उसी बात के लिए लड़कों की तारीफ़ करते हैं या फिर उनके इस तरह के रवैये को सामान्य रूप में लेते हैं।पूरी दुनिया में ढेर सारी किताबों और पत्रिकाओं में आपको ऐसे लेख मिल जाएंगे जिसमें लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें क्या करना है? कैसा बनना है और कैसा नहीं बनना है? जिससे लड़के उनकी तरफ आकर्षित हों और उनसे खुश रहें।लेकिन लड़कों को यह सिखाने के लिए कि लड़कियों को कैसे आकर्षित और खुश करते हैं, बहुत कम किताबें हैं। (जारी)