तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय रहते हुए हाल तक आजतक ग्रुप के वरिष्ठ पद पर कार्यरत थे। कवि के रूप में इनके दो कविता संग्रह ‘रोटियों के हादसे’, ’अंधेरे अपने-अपने’ प्रकाशित। कोरोना की चपेट में आकर अकाल मृत्यु।

पूरा जूता कीचड़ में सन गया। बारिश तो हुई नहीं थी, इसलिए उसे ऐसे किसी हादसे का अंदाजा नहीं था। अंधेरे की वजह से वह देख भी नहीं पाया था कि सड़क का क्या हाल है। उसने ध्यान से देखा, नाली का पानी सड़क पर बह रहा था। सड़क के गड्ढे नाली के गंदे पानी और कीचड़ से भरे हुए थे। ऐसे ही एक गड्ढे में अचानक उसका एक पांव धंस गया था। उसने गड्ढे से अपना पांव निकाला। जूते के अंदर बाहर कीचड़ ही कीचड़। जूता और जुराब का सत्यानाश हो चुका था। उसके मुंह से एक भद्दी-सी गाली निकली। उसकी रगों में खून की जगह मानो गाली ही बहती थी। वह दिन भर गाली बकता रहता था। वह किसी भी बात पर गाली दे सकता था। गुस्से में, दुख में, खुशी में। गाली बड़े ही स्वाभाविक ढंग से उसके मुंह से निकलती थी।

उसकी निगाह गली में किसी नल की तलाश करने लगी। गली में दूर इकलौता स्ट्रीट लैंप बड़े बेमन से जल रहा था, मानो बूढ़े बल्ब में जीने की कोई तमन्ना ही नहीं बची थी। गली में रोशनी कम, उसका एहसास ज्यादा था। होने के एहसास के भरोसे भी गरीबों की जिंदगी कट जाती है। इसे वह जानता था। उसे दूर-दूर तक कोई नल नहीं दिखा। उसने आँखों से अपना रंगीन चश्मा उतारा। चश्मा उतारते ही उसका चेहरा डरावना लगने लगा। इस दुनिया को जो चेहरे मान्य हैं, उनमें उसका चेहरा शुमार नहीं था। इस सड़क पर मौजूद गड्ढों की तरह ही उसके चेहरे पर जख्म के निशान बिखरे पड़े थे। इतना ही नहीं, आंख भी केवल एक, वह भी सामान्य से छोटी। दाहिनी आंख गायब। आंख वाली जगह एक बड़ा-सा गड्ढा। मानो किसी ने आंख की कोटर से पुतली निकाल ली हो। गायब आंख के आसपास का हिस्सा और भी ज्यादा विकृत। बम धमाके में उसके चेहरे का यह हाल हुआ था। बम भी वह खुद ही बना रहा था।

आंख और चेहरे के सबसे विकृत हिस्से को छिपाने के लिए वह हमेशा रंगीन चश्मा पहनता था। थोड़े बड़े साइज का। चश्मा पहन लेने के बाद वह बहुत हद तक सामान्य दिखता था। चेहरे के गड्ढों को छिपाने के लिए हमेशा सफेद गमछा लपेटे रहता था। 50 साल के आसपास का था, लेकिन उम्र से छोटा दिखता था।

उसने अपनी एकमात्र बची आंख रगड़ी। मानो इससे देखने की क्षमता बढ़ जाएगी। फिर आंख फाड़कर गली में दोनों ओर देखा। नहीं, कोई नल नहीं था। उसने घड़ी देखी। रात के 8 बज रहे थे। नल होता भी तो शायद इस वक्त पानी की सप्लाई नहीं आ रही होती। नल खोजने की कोशिश में उसने गली को ध्यान से देखा। गंदी गली थी। गली के दोनों ओर मकान। मकान के ठीक बाहर दोनों ओर नालियां। दोनों ओर की नालियां भरी हुई थीं और उनका गंदा पानी सड़क पर बह रहा था। उसे संभल कर चलना होगा वरना दूसरा जूता भी जाएगा। सड़क पर जगह-जगह कूड़े का ढेर।

ऐसे इलाके में कोई अपनी बेटी की शादी भला कैसे कर सकता है? गली की दुर्दशा देख उसके मन में सबसे पहले यही सवाल उठा। पता नहीं, वह लड़की यहां कैसे रहती होगी? अब कीचड़ भरा जूता घसीटते हुए ही उसे लड़की के घर तक जाना पड़ेगा। कीचड़ के साथ जूते में घुस आए मिट्टी-कंकड़ पैर में चुभ रहे थे लेकिन आगे तो बढ़ना ही था।

लड़की को उसने बहुत पहले देखा था। तब वह आठ-दस साल की रही होगी। काका-काका कहते हुए उससे चिपकी रहती थी। वह उसे घुमाता, चॉकलेट खिलाता। उसके बाप से यारी थी उसकी, लेकिन जिंदगी ने ऐसा मोड़ लिया कि सब कुछ बदल गया। अपनों ने तो मुंह मोड़ा ही उसके पैसे पर दारू उड़ाने वाले यार-दोस्तों ने भी कन्नी काट ली। लड़की का बाप भी। न कोई उससे अस्पताल मिलने आया था, न ही जेल में। वह उस मोड़ को याद नहीं करना चाहता था। स्साली याद। वह बुदबुदाया।

गहरी सांस लेकर वह आगे बढ़ा। स्ट्रीट लैंप के पास आकर उसने जेब से कागज का छोटा-सा पुर्जा निकाला। वह पते के बारे में आश्वस्त हो जाना चाहता था। गली नंबर 10, मकान नंबर 561, सामने ही उसकी मंजिल थी। वह लड़की के घर के सामने खड़ा था। खपरैल का छोटा-सा घर। कमजोर हो रही दीवारों से बाहर झांकती ईंटें उदास और ऊबी हुई लगीं। शायद वो यहां से निकल भागना चाहती थीं। उसे वह सरिया वाला विज्ञापन याद आ गया, जिसमें एक सरिया दूसरी बिल्डिंग के सरिया के साथ भाग जाता है, लेकिन उसे हँसी नहीं आई। वह उदास हो गया।

दीवारें घर में रहने वालों की गरीबी की चुगली कर रही थीं। उनकी आंखों में प्लस्तर और रंगाईपुताई का सपना पूरा होने से पहले ही मर चुका था। भला ऐसे घर में कोई बेटी की ब्याह करता है। उसे लड़की के नसीब और उसके बाप के फैसले पर कोफ्त हुई।

दरवाजे पर दस्तक देने से पहले उसका दिल जोर से धड़का। वह कहीं कमजोर तो नहीं पड़ रहा? इससे पहले तो कभी उसका दिल इस तरह नहीं धड़का था। क्या वह डर रहा है? कितने लोगों की जान इन्हीं हाथों से ले चुका है। एक बार भी उसे डर नहीं लगा। उसके साहस की वजह से ही पुरुषोत्तम बाबू मंत्री बन पाए थे। स्साला हरामजादा। पुरुषोत्तम का नाम याद आते ही उसकी जुबान से गाली निकल पड़ती। पुरुषोत्तम विरोधियों की लिस्ट बना कर देता और वह उन्हें ठोंक देता। सब समझ गए थे कि जो पुरुषोत्तम का विरोध करेगा वो जिंदा नहीं रहेगा। फिर तो उसका एकछत्र राज हो गया था। वह भी क्या दिन थे। जिंदगी का कौन-सा सुख नहीं भोगा था उसने।

यह काम कर पाएगा न वह? उसने खुद से ही पूछा।

हां, जरूर। उसने खुद को ही जवाब दिया। हां, यह सच है कि पिछले 15 साल में उसने कोई कत्ल नहीं किया। इनमें से दस साल तो वह जेल में ही था। शेर क्या कभी शिकार करना भूल सकता है? उसने खुद को न केवल गरियाया, बल्कि समझाया भी।बंद कर दो शेर को पिंजरे में 15 साल। फिर पिंजरा खोल कर देखो क्या करता है वह? चीर-फाड़ कर नहीं रख देगा! आज शेर पिंजरे के बाहर आ गया है। शिकार तो होगा। उसने दरवाजे पर दस्तक दिया। कुछ देर इंतजार किया। कोई हलचल नहीं। लड़की के बाप के मुताबिक इस वक्त घर में लड़की और उसके पति को होना चाहिए। फिर इतना सन्नाटा क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि लड़की को मार कर उसके ससुराल वाले फरार हो गए हों। दहेज के लोभी जालिम और दुष्ट कुछ भी कर सकते हैं। उसे लड़की के बाप का चेहरा याद आ गया। कितना रो रहा था बेचारा। उसने आगाह भी किया था कि अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो वो लोग लड़की को मार डालेंगे।

उसने जोर से तीन-चार बार दरवाजे का सांकल बजाया। बूढ़ा बल्ब कांप उठा। भीतर से आवाज आई ‘कौन?’

लगा कोयल कूक उठी। वीणा के तार झंकृत हो गए। इतनी मीठी आवाज। आवाज बताती है लड़की मासूम होगी। ऐसी मासूम बेटी की जान लेने पर तुले हैं ये जालिम?

‘कौन है?जवाब क्यों नहीं देता।’ अंदर से फिर आवाज आई।

ओह, कानों में शहद घुल गया। कितनी मीठी होती हैं बेटियां। काश, उसकी भी एक बेटी होती, लेकिन ऐसा सोचते ही वह कांप उठा। बेटियों के नसीब में दुख ही होता है। जंजीर के साथ पैदा होती हैं। मां-बाप पढ़ाते हैं, लिखाते हैं, परियों की तरह उड़ने के लिए पंख देते हैं लेकिन जंजीर नहीं खोलते। जब वह जंजीर खोलने के लिए तड़फड़ाने लगती हैं तो पर काट देते हैं और गुलाम बनाकर भेज देते हैं किसी दूसरे के घर। कुछ उड़ना भूल जाती हैं। कुछ नए सिरे से उड़ने की कोशिश करती हैं। यह लड़की भी उड़ना चाहती है। इसी की सजा उसे ससुराल वाले दे रहे हैं। वह भी इससे अलग क्या बनता? ऐसा ही बाप बनता। दुनिया में ज्यादातर लड़कियों को ऐसे ही मां-बाप मिलते हैं।

‘बिटिया मैं…’ अपना नाम लेने से पहले वह सहम गया। इस तरह जोर से अपना नाम बोलने से आसपास वालों को भी पता चल जाएगा। फिर पुलिस को उस तक पहुंचने में कितना वक्त लगेगा!

भड़ाक से दरवाजा खुला, ‘मैं, कौन?’

सामने तो साक्षात लक्ष्मी खड़ी थी। ऐसी लक्ष्मी की शादी कोई ऐसे शैतान के घर करता है? कैसा बाप है? उसे बार-बार लड़की के बाप पर गुस्सा आ रहा था।

‘मैं…

लड़की की आंखों में सवाल था। उसे लड़की की आंखों में घर की दीवार दिखी। सारे सपने मरे हुए।

मैं नगीना। तेरा नग्गू काका…’

लड़की का चेहरा देख कर साफ था कि उसे याद नहीं आ रहा कि कौन नग्गू काका।

‘अरे याद नहीं आ रहा बच्चा? नग्गू काका। दिन भर तो मेरे कंधे पर घूमती थी। चॉकलेट खरीद-खरीद कर खिलाता था।’ फिर थोड़ी देर ठहर कर बोला, ‘तेरे बाप ने भेजा है तेरा हालचाल लेने के लिए।’

‘बाप ने भेजा है?’ उसके सवाल में एक अविश्वास था। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उसका बाप किसी को उससे मिलने के लिए भी भेज सकता है।

‘और क्या? तेरा हाल-चाल लेने के लिए मुझे भेजा।’

एक खामोशी छा गई लेकिन लड़की दरवाजे से हट गई। शादी के बाद बाप ने पहली बार किसी को उसका हाल जानने के लिए भेजा है। यही काफी है। नग्गू काका याद नहीं आ रहे तो कोई बात नहीं। पापा ने भेजा है यह परिचय ही काफी है। उसकी आंखें डबडबा गईं। सही कहा था उसके पति ने, वक्त सारे गिलेशिकवे दूर कर देता है।

वह पांव घसीटता हुआ अंदर घुसा। सामने छोटा-सा आंगन। आंगन में अमरूद का पेड़ और उसके नीचे हैंडपंप। वह सीधे हैंडपंप के पास गया। लड़की भी पीछे-पीछे पहुंच गई। वह कंधे पर लटका बैग उतार कर पेड़ पर ही टांगने की जगह ढूंढ़ने लगा तो लड़की ने उसे ले लिया और वहीं आंगन में बिछी खटिया पर रख दिया। वह अपने जूते उतारने लगा।

‘क्या हुआ?’

‘अरे बिटिया, गली में घुसते ही पांव कीचड़ में धँस गया। पूरा जूता खराब हो गया। पहले धो लूं नहीं तो खराब हो जाएगा।’ उसने कहा।

‘आप जूता रख दीजिए, मैं धो दूंगी। आप पांव धोइए।’ मुंह धोने के लिए उसने जैसे ही चश्मा उतारा, लड़की चीख कर दो कदम पीछे हट गई।

‘डर मत बेटी। तेरे काका का चेहरा अब पहले जैसा नहीं रहा। बिगड़ गया है। लंबी कहानी है। तू पंप चला।’ उसने आश्वस्त किया तो लड़की फिर हैंडपंप चलाने लगी, लेकिन वह सहमी-सहमी सी रही। वह मुंह पर पानी मारने लगा। बहुत आराम मिला।

खपरैल वाले छोटे से घर में ही ड्राइंग रूम भी था, बेड रूम और किचन भी। पढ़ा-लिखा समाज अपने हिसाबसे जगहों का नामकरण कर लेता है। उसे ड्राइंग रूम में बिठाकर लड़की चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई। ड्राइंग रूम से रसोई घर नहीं दिखता था। उससे जुड़े दोनों कमरों के दरवाजों पर पर्दे लगे हुए थे। इसलिए यह पता लगाना मुश्किल था कि कमरे में कोई है या नहीं। सन्नाटे से तो लग रहा था कि लड़की घर में अकेली ही है। कोई होता तो उसके आने पर जरूर बाहर निकल आता। दीवारों ने घर के लोगों के बारे में उससे जो चुगली की थी, वह पूरा सच नहीं था। ये इन गरीबों के बीच ज्यादा संपन्न दिख रहे थे। टीवी, फ्रीज, कूलर सबकुछ तो था। तो क्या लड़की घर में अकेली है? उसका पति कहां है? उसके मन में यही सवाल था। उसने अपना बैग टटोला। तमंचा अंदर ही था।

लड़की एक ट्रे में दो कप चाय, ढेर सारा बिस्किट और नमकीन लेकर आ गई।

‘तुम खुश हो?’ उसने पूछा तो लड़की चौंकी नहीं, बल्कि और आश्वस्त हुई कि उसे पापा ने ही भेजा है।

बहुतबहुत खुश हूँ मैं। ओम बहुत अच्छे इंसान हैं। वो मेरा बहुत ख्याल रखते हैं।उसने अंदाजा लगाया ओम उसके पति का नाम है। लड़की जो बोल रही है, वह तो उसके बाप की बातों से बिलकुल उलट है। उसे हैरानी हुई।

‘ओम…’ उसने चाय सुड़कते हुए कहा, ‘बहुत अच्छा नाम है।’

लड़की मुस्कराई।

‘दिख नहीं रहे। कहां हैं जमाई बाबू?’ वह मुद्दे की बात पर आ गया।

‘जी, वह टूर पर गए हैं। कल रात तक लौटेंगे। उन्हें अक्सर ही दफ्तर के काम से बाहर जाना पड़ता है।’

‘कल रात को?’ उसका दिल बैठ गया। तो क्या काम पूरा करने के लिए उसे कल रात तक रुकना पड़ेगा? उसका तो पूरा प्लान ही बिगड़ गया। उसे लड़की के बाप पर बहुत गुस्सा आया। उसने तो कहा था कि आज यह काम नहीं हुआ तो कल तक उसकी बेटी की जान चली जाएगी। बेटी तो खुश दिख रही थी। खटका सा लगा।

‘मैं चश्मा खोल दूं। डरोगी तो नहीं।’ उसने मुस्कराते हुए पूछा।

लड़की झेंप गई। उसने इशारे से इजाजत दे दी।

‘पहले मैं ऐसा नहीं था बेटा। देखने में अच्छा ही था। रुको तुम्हें दिखाता हूं अपनी जवानी की तस्वीर।’ ऐसा कहकर वह अपनी थैली में कुछ टटोलने लगा। फिर उसमें से एक पर्स निकाला। पर्स से तस्वीर निकाल कर वह लड़की की ओर बढ़ाया।

‘पहले ऐसा था मैं।’

लड़की तस्वीर देखने लगी। वह चाय के साथ बिस्किट भी खाने लगा। बीच-बीच में नमकीन। उसे भूख लगी थी। लड़की को चेहरा जाना-पहचाना लगा। उसे याद आ गए नग्गू चाचा।

‘मैं अब आपको पहचान गई।’

उसे अच्छा लगा। बिटिया ने उसे पहचाना। आठ-दस साल की उम्र में देखा होगा, फिर भी उसे याद है। यह होता है लगाव।

‘आप चश्मे में थे, इसलिए पहचान नहीं पाई’ लड़की ने चाय का आखिरी घूंट पीने के बाद कहा।

‘तुम्हारी जगह मैं होता तो मैं भी पहचान नहीं पाता। अब तो सूरत बिलकुल बिगड़ गई है न!’

‘कैसे हो गया यह सब?’

लड़की को उसकी कहानी में दिलचस्पी हो गई।

गुनाह किसी को नहीं छोड़ता बेटा। अपने कर्मों की सजा आदमी को इसी जनम में भोगनी पड़ती है।हर समय गाली बकने वाला अचानक दार्शनिक हो गया, लेकिन अपने दर्शन पर उसे खुद भी हैरानी हो रही थी। यहां तो एक गुनाह करने की मंशा से ही आया है। जघन्य गुनाह।

‘चुप क्यों हो गए काका?’

‘बेटा, मैं सही आदमी नहीं हूँ।’ वह रो पड़ा। उसके अंदर का अपराधी पिघल कर इंसान बन रहा था। बेटियों की छुअन ऐसी ही होती है। बचपन में जिसे खिलाया, गोद में घुमाया, उससे फरेब कैसे करेगा?

‘बेटा, मैंने बहुत पाप किया हैं। पुरुषोत्तम नेता के लिए कई कत्ल किए। चुनाव से पहले उसके लिए ही बम बना रहा था कि अचानक बम फट गया। उसी में मेरी एक आंख उड़ गई। दाहिने हाथ की तीन उंगलियां भी पूरी तरह खत्म हो गईं।’ उसने दाहिने हाथ को उसकी ओर बढ़ाकर दिखाया।

लड़की कांप उठी।

‘ओह कितना दर्द, कितनी पीड़ा हुई होगी आपको?’

‘इस पीड़ा के आगे बेटा वह पीड़ा कुछ भी नहीं जो लोगों ने मुझे दिया। उस संकट में सबने मुंह फेर लिया। पुरुषोत्तम ने मुझे विरोधी गुट का बता दिया। पुरुषोत्तम पॉवरफुल था, उसके पलटते ही यार-दोस्त, नाते-रिश्तेदार सबने मुंह मोड़ लिया। अस्पताल में रहा। फिर जेल में रहा।’

वह पुरानी यादों की गलियों में घूमता रहा, लेकिन इस बार याद को गाली नहीं दी। वह रोता रहा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह अपनी कहानी लेकर क्यों बैठ गया? क्या आजतक उसे कोई सुनने वाला नहीं था, इसलिए वह अंदर ही अंदर इतना उबल रहा था। टूट रहा था। आज ममता के साथ मन से उसकी व्यथा सुनने वाला कोई मिल गया तो पिंजरे से निकला शेर बकरी बन गया। उसने दिमाग पर जोर दिया। जेल से छूटने के बाद वह किसी से ठीक से बात नहीं कर पाया। ऐसा कोई  नहीं था जिससे वह दिल की बात कर सके। पूरे कमरे में दुख की कमी न थी। लड़की भी सिसक रही थी।

‘वाकई तू खुश है न?’ डिनर करते वक्त उसने फिर पूछा। लड़की भी उसके साथ खाने बैठी थी। उसने जल्दी-जल्दी में काका के लिए खाना तैयार कर लिया था।

‘आपको देखकर क्या लग रहा है? पापा से कहिएगा मैं बहुत खुश हूँ।’

‘मुझे पता था पापा ज्यादा दिन नाराज नहीं रह पाएंगे। वह मुझसे बहुत प्यार करते हैं।’ लड़की ने खामोशी तोड़ी।

‘पापा नाराज थे तुमसे?’ वह चौंका। लड़की का बाप तो दामाद से नाराज था। बेटी के लिए तो चिंतित था।

हां, उन्होंने आपको बताया नहीं। मैंने अपनी मर्जी से शादी कर ली थी, वह भी छोटी जाति के लड़के से। इसलिए पूरे घर वालों ने मुंह मोड़ लिया था। पापा बहुत गुस्से में थे। जान से मारने की धमकी भी दी थी बिरादरी के कई लोगों ने।

वह आसमान से गिरा, लेकिन अपनी हैरानी लड़की पर जाहिर नहीं होने दी।

‘डेढ़ साल हो गए, तब से घर वालों ने मुझसे नाता तोड़ लिया। वो इस बात को बर्दाश्त ही नहीं कर पाए कि मैं छोटी जाति में शादी कर सकती हूँ। आप ही बताइए चाचा, आदमी का अच्छा, पढ़ा-लिखा होना ज्यादा जरूरी है कि जाति? कौन किस जाति में पैदा होगा, यह तो आदमी के वश में नहीं है न!फिर जाति तो हमने ही बनाई है न!’

कुछ देर फिर खामोशी छाई रही। बिलकुल सही। वह सच जानने की कोशिश कर रहा था, ‘तुम्हारे घर वाले नाराज हो गए और ओम के घर वाले दहेज के लिए तंग करने लगे।’

‘दहेज’ लड़की की आंखें फटी रह गईं, ‘ये आपसे किसने कह दिया?’

उसने जवाब नहीं दिया। चुपचाप उसकी ओर देखता रहा।

‘हमने प्रेम विवाह किया है काका। फिर दहेज का सवाल कहां से आया? हमारा यह परिवार बहुत पढ़ा-लिखा और सभ्य है। वह उन रूढ़ियों और बुराइयों से मुक्त है, जिससे खुद मेरे पिता मुक्त नहीं हो पाए।’

‘ओह, तो लड़की के बाप ने बिलकुल झूठी कहानी गढ़ी थी। सचमुच असभ्य है वह। वह पूरा माजरा समझ गया।

वह उठकर लड़की के पास गया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘तुम दोनों हमेशा ऐसे ही खुश और सुखी रहो बेटा।’ उसका गला भर आया। लड़की को लगा कि सर पर पिता का हाथ है। वह रो पड़ी।

‘अब इजाजत दो बेटा। रात 12.40 की आखिरी लोकल मुझे पकड़नी ही पड़ेगी।’

‘अरे नहीं काका, इतनी रात को नहीं जाने दूंगी। आप रुकिए। कल शाम को वो आएंगे। मिलकर परसों सुबह चले जाइएगा। उन्हें यह जानकर बहुत खुशी होगी कि पापा ने आपको यहां भेजा।’

‘नहीं बेटा, आज जाने दो। मैं तुम्हारे ओम से मिलने एक दिन जरूर आऊँगा, लेकिन कल मुझे काम है, इसलिए जाना पड़ेगा। तुम्हारे पापा तुम्हारा हाल जानने के लिए बेताब होंगे।’

‘पापा को फोन कर लेते हैं। मोबाइल तो उन्होंने ले ही लिया होगा।’

‘मोबाइल तो है बेटा, लेकिन मुझे नंबर नहीं पता। फोन करना भी मत। मैं जाकर खुद बताऊंगा तो इसमें मुझे भी तो सुख मिलेगा।’

‘पापा को कहिएगा कि हम लोग जल्द आएंगे। उनका गुस्सा ठंडा हो गया है तो अगले हफ्ते ही। ओम की बहुत इच्छा है कि वो मुझे लेकर वहां जाएं। वह हमेशा इस अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं कि उनके प्यार ने मुझसे मेरा परिवार छीन लिया।’

इस मासूमियत पर वह ऊपर से नीचे तक कांप उठा। वह लड़की के सामने उसके बाप की सचाई बताना नहीं चाहता था, लेकिन अब वह क्या करे। लड़की तो पति को लेकर बाप से मिलने जाने को बेताब है। उसे अब सच बोलना ही पड़ेगा।

‘नहीं बेटा, अपने बाप से मिलने कभी मत जाना। अपने पति को उसके आसपास फटकने तक मत देना।’

‘क्या मतलब?’ लड़की हैरान रह गई।

‘तुम्हारा बाप तुम्हारे पति की जान लेना चाहता है।’

‘ये क्या कह रहे हैं आप?’ वह चीख उठी।

उसे भरोसा नहीं हुआ। वह फफक-फफक कर रो पड़ी।

‘पिता है कि जल्लाद, जो बेटी का ही सुहाग उजाड़ना चाहते हैं।’ उसने रोते हुए ही नग्गू काका से पूछा।

‘वह जल्लाद तो बिलकुल नहीं है बेटा, वह बाप ही है। जल्लाद कभी भी अपने बच्चों की हत्या नहीं करता। सच पूछो तो आज जल्लाद बनकर मैं आया था। तुम्हारे पिता ने मुझे दी थी ओम की सुपारी।’

लड़की आंखें फाड़े उसे देखती रही। तो क्या वह अपने पति की जान लेने आए कातिल की सेवा करती रही? लेकिन नहीं, यह तो जान बचाने की कोशिश कर रहा है। वह चाहता तो रुक सकता था। उसके पति की हत्या में कामयाब भी हो सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह फफक कर रो पड़ी।

‘नहीं, आप जल्लाद नहीं हो। आप वाकई पिता हो। आपके अंदर बाप का वो दिल है, जो मेरे पापा में नहीं है।’ वह उसके गले लग गई। जिन रगों में गालियां बहती थीं, उनमें बेटी के प्यार की मिठास घुलने लगी।

उसने लड़की को धीरे से अपने से अलग किया।

‘बेटा, अब चुप हो जा। मैं एक आंख से कितना रोऊंगा।’

उसकी इस बात पर लड़की को रोते-राते भी हँसी आ गई।

‘अब इजाजत दे बेटा। इस बार कातिल बनकर आया था, इसलिए खाली हाथ आया था। अगली बार बाप बनकर आऊंगा तो कम से कम मिठाई जरूर लाऊंगा।’ वह आगे बढ़ गया। जूते से कीचड़ बिलकुल साफ हो गया था। चलने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। वह सोचने लगा काश, इंसान के दिमाग में भरे कीचड़ को भी साफ किया जा सकता।