इप्टा द्वारा आयोजित ‘ढाई आखर प्रेम’ की राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा चार माह की दीर्घावधि में 21 राज्यों से गुजरी। जन-संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से प्रेम का सन्देश फैलाकर इस महा-अभियान का समापन दिल्ली में हुआ। गांधी का शहादत दिवस होने के कारण समापन स्थल हरिजन सेवक संघ को चुना गया था। इससे पूर्व दिल्ली में 26 से 28 जनवरी 2024 तक राजधानी के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न समुदायों और विविधता के साथ पदयात्रा की गई। इसमें पर्यावरण, सांस्कृतिक विरासत, लोक कलाकारों से चर्चा और विभिन्न प्रस्तुतियों के अलावा जन-संवाद भी किया गया।
देशव्यापी ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा ने भगत सिंह के जन्मदिन 28 सितंबर 2023 को राजस्थान से शुरू हुई थी। इस दौरान 21 राज्यों के अनेक गांवों-कस्बों-शहरों में पदयात्रा की गई। स्थानीय कलाकार, लोक-कलाकार, समाज-सचेत नागरिकों की उपस्थिति से ‘ढाई आखर प्रेम’ के यात्रियों ने एक तरफ कई संस्कृतिओं को देखा, समझा और बूझा, वहीं जीवन की सरलता और सहजता को आत्मसात करने की कोशिश को बल मिला। इप्टा की राष्ट्रीय पहल पर देशव्यापी संगठनों, संस्थाओं के अलावा स्थानीय संस्थाओं, संगठनों और व्यक्तियों की वजह से यह यात्रा संभव हो पाई।
‘ढाई आखर प्रेम’ की राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा में देश के अनेक संगठन, संस्थाएं तथा व्यक्ति स्वेच्छा से सम्मिलित हुए। इसके आयोजन के लिए अनेक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने लगातार काम किया, असंख्य गांवों के अनेक समुदायों से मेल-मुलाकातें कीं और प्रेम की एक अनवरत शृंखला बनती चली गई।
इस समूची चार माह की राष्ट्रव्यापी यात्रा के प्रचार-प्रसार एवं आपसी समन्वय-संपर्क के लिए युवा साथियों की एक सेंट्रल कोऑर्डिनेशन टीम गठित की गई थी, जिसने यात्रा के पहले, यात्रा के दौरान और बाद में भी यात्रा संबंधी वीडियो, ऑडियो, फोटो, रिपोर्ट्स, पोस्टर्स, ब्रोशर्स, सूचनाओं, संदेशों को तैयार करने और उन्हें अनेक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा करने में दिन-रात परिश्रम किया।
अर्पिता श्रीवास्तव
राहुल सांकृत्यायन एशियाई जागरण पर सोचते थे
भारतीय भाषा परिषद में इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र द्वारा मिलकर आयोजित एक व्याख्यान कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया और कोरिया के विश्वविद्यालयों तथा नालंदा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके वरिष्ठ शिक्षाविद पंकज राहुल ने राहुल सांकृत्यायन के इतिहास, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में योगदान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि राहुल ने एशिया की महानता की अवधारणा दी और एशिया का इतिहास लिखने की शुरुआत की। राहुल एक विश्वकोशीय सोच के व्यक्तित्व थे।
मुख्य अतिथि के रूप में व्याख्यान देते हुए प्रो. पंकज मोहन ने बताया कि राहुल ने कहा था कि यदि हमें अपनी प्राचीन महानता के बारे में चिंतन करना है तो सबसे पहले एक-दूसरे को समझना होगा। सभी संस्कृतियों को एक-दूसरे को समझना होगा। आज एशिया में दूरियां और तनाव हों, पर एक समय सभी जातियां आपस में संवाद करती थीं। खासकर बौद्ध धर्म के प्रचार के काल में इस महादेश के लोग एक दूसरे के नजदीक आ रहे थे। खासकर नालंदा बौद्ध धर्म से ऊपर उठकर हिंदू धर्म और और विभिन्न पंथों के अध्ययन का केंद्र था।
डा. शंभुनाथ ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन ने एशिया का इतिहास-लेखन शुरू करके अपने समय में पगडंडी निर्माण का काम किया जो आज चौड़ी सड़क बनाने से ज्यादा कठिन था। वह जमाना आज की तरह विशेषज्ञता का न होकर बहुज्ञता का था। वे नवजागरण और प्रगतिशील आंदोलनों के बीच पुल थे।
प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि ‘इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र’ कोलकाता के युवा बौद्धिक जगत को विचारों की दुनिया में, बहसों में शामिल करने के लिए है। हम चाहते हैं कि शोधकर्ता, शिक्षक और उच्च शिक्षा से जुड़े विद्यार्थियों को विचार विमर्श का एक खुला मंच मिले। आज इसके पहले आयोजन का उद्घाटन डा. कुसुम खेमानी की उपस्थिति में हुआ। सभा के प्रश्न काल के बाद डा.सोमा बसु ने धन्यवाद दिया।
इस चर्चा में डा.कुसुम खेमानी, डा. टेरेसा चोई (कोरिया), मृत्युंजय श्रीवास्तव, मंजर जमील, डा. देबारती तरफदार, डा. बुलू मोदक , डा.नंदिता बनर्जी समेत बहुत सारे शोधार्थी और छात्र छात्राएं उपस्थित थे।