अंग्रेजी के व्याख्याता। दो काव्य संकलन ‘कुछ हिस्सा तो उनका भी है’, ‘समकाल की आवाज़’। यात्रा वृत्तांत और संस्मरणों का संकलन ‘बस्तर में तीन दिन’ प्रकाशित।
ग़ाज़ा में बच्चे
एक
दोस्तो
बुरा न मानना
मत करना इंतज़ार
मेरी कविताओं का
कि कविता में मौजूद मेरे शब्द
मेरी पंक्तियां
ग़ाज़ा में बच गए बच्चों की
तकलीफों को बयां करने में सक्षम नहीं हैं
न ही इन कविताओं में नेतन्याहू और
हमास के लड़ाकों में
करुणा पैदा करने का दम ही है
मेरा ‘कवि’ हर रोज़
दफनाया जा रहा है
ग़ाज़ा में मारे गए बच्चों के साथ
मत पूछना कितनी बार…
दो
हमारे मोहल्लों में
बच्चे खेलते-खेलते चीखते हैं
तो खुश होते हैं बड़े
मांएं अक्सर घरों से बाहर निकल आती हैं
खुश होती हैं वे भी संग संग बच्चों के
ग़ाज़ा में चीख रहे हैं बच्चे
भयंकर दर्द से
बच्चों ने अभी-अभी पतंगों को नहीं
अपने और अपनों के अंगों को
उड़ते देखा है
बहते देखा है ख़ून का रेला
वे चीख रहे हैं
उखड़ रही हैं उनकी सांसें
बच्चे खुद को मरते हुए देख रहे हैं…।
तीन
कैसे लगते हैं आपको
खुशी के चहबच्चे में तैरते बच्चे
बरगद की शाखों पर बैठे
चिड़ियों से चहचहाते बच्चे
घरों से निकलते एक साथ
खेलते-खिलखिलाते
पहली बारिश में भीगे बच्चे
और मां के हाथों की मार के डर से
पापा की टांगों के पीछे छिपते बच्चे
कैसे लगते हैं आपको
ख़ून में नहाए रोते कलपते बच्चे
युद्ध में बचे जाने-अनजाने लोगों के साथ भागते
भूख और थकान से चूर
शराबियों की तरह लहराते बच्चे
कैसे लगते हैं आपको?
संपर्क :1/बी/83, बालको टाउनशिप, बालको, जिला – कोरबा, छत्तीसगढ़-495684 मो.8319273093