आदमी के पास चिड़िया आती थी जब-तब। एक दिन मजाक-मजाक में आदमी ने पूछा-

‘जंगल बेचोगी?’

‘बेचा गया,’ चिड़िया ने धीरे से कहा।

‘नदी बेचोगी?’ आदमी ने मशीन की तरह दुहराया।

‘बेची गयी,’ वह उदास होकर बोली।

‘आसमान?’

‘वह भी!’

‘अब रहोगी कहां?’

‘आदमी की बस्ती में!’

‘मन लगेगा?’ आदमी ने तंज किया।

‘सब सवाल चिड़िया से ही पूछोगे?’ चिड़िया ने एक वेधने वाली नजर उस पर डाल कर कहा।

‘तब किससे पूछें?’

‘कुछ आदमी से पूछो!’

‘आदमी से क्यों?’ आदमी अकबकाया।

‘काश! तुम चिड़िया होते!’ चिड़िया ने परेशान होकर कहा।

‘तो क्या होता?’ बिना परेशान हुए आदमी ने कहा।

‘चिड़िया का दुख समझ में आता!’ चिड़िया तल्ख हुई।

चिड़िया का जवाब सुनकर आदमी थोड़ी देर के लिए खुद में गुम हो गया। उसका दुख पारे सा चमक रहा था। जंगल, नदी, पहाड़, झरने, आसमान, सब उस पारे में सिमट गए थे।

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