युवा कवि।ताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी।मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से संबंध।कविता संग्रह ‘नूह की नाव’ प्रकाशित।
तुम, जो जीत जाते हो
तुम्हारा जीत जाना बहस में
तुम्हारी साफगोई की तस्दीक नहीं करता
वह दर्शाता है बस इतना
कि तुम वकील होते वाकई कमाल के
फेंकते हो तुम अपने पत्ते संभाल के
जिरह के मुताबिक तुम
उखाड़ लाते हो गड़े मुर्दे
एकदम उचित समय पूर्व काल कवलित
बल्कि मुझे लगता है
तुम उन्हें कभी दफनाते ही नहीं
मर्यादा से बंधा मैं
जिंदा किसी शै से समय रहते शाया करता नहीं
और मुर्दों को जलाकर
श्मशान में ही छोड़ आता हूँ
उनकी राख, अस्थियां सब
कोई और अपना मुर्दा जलाता है उस ढेर पर
कोई और बहाता है
उनकी अस्थियां और राख
अपने मुर्दे के साथ
या देता है बुहार कर फेंक
मुर्दा भस्म में अपने-पराए का भेद देख
मेरी ओर से प्रस्तुत नहीं होता
कोई साक्ष्य, कोई चश्मदीद
और फिर, जिरह में तो तुम
मेरी अपेक्षा पटुतर हो ही।
पक्षी और बारिश
मैंने थाली में खाना डालते हुए बाहर देखा था
रिमझिम तब शुरू हुई थी
खाना चबा लेने और डकार लेने के दौरान
तेज हो चुकी है बारिश
खिड़की के सामने पेड़ पर भीग रहा है पक्षी
मैं मनुष्यों की भाषा में उसे पुकारता हूँ-
पत्तों की आड़ में
निचली डाली पर चले जाओ पेड़ की
पर वह उड़कर चला जाता है
और ऊपर, बिजली के तार पर
वह अपने पंखों को फैला रहा है
मानो जांच रहा हो
कितनी होश में है उड़ान
मैं चीखता हूँ-
मंदिर के बरामदे में चले जाओ
वह तार पर डटा रहता है
मैं कमरे की खिड़की खोल देता हूँ
कहता हूँ, भीतर चले आओ
खिड़की खुली रहती है
कमरे में छींटें पड़ती रहती हैं।
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