भारतीय भाषा परिषद में युवा लेखन कार्यशाला

भारतीय भाषा परिषद में युवा लेखन कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने कहा कि युवा लेखन ही हिंदी का भविष्य है।इस कार्यक्रम से सैकड़ों युवा प्रतिभाओं को मार्गदर्शन मिलेगा और भाषा सुधार के साथ उनकी रचनाओं में परिपक्वता आएगी।यह एक प्रेरक प्रयोगशाला का काम करेगा।कल्पनाशीलता को बचाने के लिए रचनात्मकता को बचाना जरूरी है।इसमें कविता, कहानी, साक्षात्कार विधि, समीक्षा, रपट, प्रूफ रीडिंग आदि विषयों पर चर्चा होगी।जोर रचना पाठ और संवाद पर होगा।

उद्बोधन सत्र में डॉ. अवधेश प्रसाद सिंह ने कहा कि एक लेखक के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है।पढ़ने से बुद्धि और ज्ञान का विकास होगा जो रचनात्मक लेखन में सहयोगी होता है।मृत्युंजय ने कहा कि लेखकों से संवाद करने से रचनात्मकता में निखार आती है।प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि लिखते रहने से अपने भीतर का आदमी बड़ा बनता है।प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि इस दौड़ते समय में स्वयं पर नियंत्रण रखने की जरूरत है।साहित्य नहीं पढ़ने का मतलब मानवता से दूर होना है।

इतिहास का तथ्य साहित्य को समृद्ध करता है

युवा लेखन कार्यशाला के दूसरे सप्ताह के कार्यक्रम में प्रो.हितेंद्र पटेल ने कहा कि साहित्य में इतिहास के तथ्य सत्य के रूप में आते हैं और सच के कई रूप हो सकते हैं।एक ही कोण से देखा गया इतिहास अधूरा होता है।नए लेखकों को साहित्य चीजों के एक नए संसार से जोड़ेगा है और उन्हें कल्पनाशील बनाएगा।भारतीय भाषा परिषद की युवा लेखन कार्यशाला में चुने हुए 30 नवोदित रचनाकारों ने इतिहास, लेखन कौशल और भाषा में सुधार लाने के सवालों पर  हर शनिवार को विशेषज्ञों से जीवंत संवाद कर रहे हैं।

परिषद के निदेशक डॉ. शंभुनाथ ने अपने संबोधन में कहा कि रचनात्मकता का अर्थ है बाउंड्री को तोड़ना- घिसीपिटी भाषा, विश्वासों और कल्पना से बाहर निकल कर कुछ नया रचना।

युवा कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।कार्यक्रम का संयोजन और संचालन रेशमी सेनशर्मा, तृषान्विता बनिक और राजेश सिंह ने किया।