युवा कवि। कविता संकलन ‘नूह की नाव’ और ‘छोटी आंखों की पुतलियों में’।
मैं न्यूयॉर्क के बारे में ज़्यादा नहीं जानता था
मैं न्यूयॉर्क के बारे में ज़्यादा नहीं जानता था
कोर्स की किताबों के बाहर
उस शहर के बारे में पढ़ा पहली बार
ग्यारह सितंबर की घटना के बाद
मेरे भीतर भी ध्वस्त इमारतें हैं
अंदरूनी तौर पर
मैं न्यूयॉर्क के बारे में जानता था उतना ही
जितना फिल्मों और टीवी में देखा
वह तो भला हो ‘फ्रेंड्स’ का
वरना फिल्में देखने के कुछ दिन बाद
गड्डमड्ड हो जाते हैं उनमें दिखाए शहरों के नाम
मुझे नहीं मालूम
वह कब पहुंचती थी न्यूयॉर्क
किन लोगों से मिलती थी
मुझे पता चलता लौटते वक्त
एयरपोर्ट पर बोरियत से बचने के लिए
जब वह मुझे फोन मिलाती थी
वह उसे अपना प्रिय शहर कहती थी
मुझे ठीक से नहीं मालूम क्यों कहती थी
‘यह बहता हुआ शहर है’
ऐसा उसने कहा एक बार
और मुझे याद आई
काठगोदाम से ज्योलीकोट के रास्ते में
बहती एक नदी
जब उसने कहा :
‘यह स्ट्रीट फोटोग्राफी के लिए स्वर्ग है’
मैं चीड़ के पेड़ों की बगल से गुज़रा
और सड़क पर जा पहुँचा
कंकर फेंक मैंने बंदरों को रास्ते से हटाया
उसने मुझे बताया
न्यूयॉर्क के बेघर लोगों के बारे में
और मैंने बीस रुपए दिए
शाम उस शराबी को
जो दिन भर
बस स्टैंड से पर्यटकों को घेरकर
सस्ते होटलों तक पहुंचाने के एवज में
बीस रुपए प्रति कमरा बुकिंग पाता था
जब उसने पूछा :
‘तुम्हें पता है, टाइटेनिक न्यूयॉर्क जा रहा था?
उस वक़्त इस बात को मैं भूला हुआ था
मैंने कहा : ‘डूबता-उतराता पहुंच जाऊंगा’
इसके बाद उसने मुझे
न्यूयॉर्क के बारे में कुछ और नहीं बताया
मैं न्यूयॉर्क के बारे में ज़्यादा नहीं जानता था।
संपर्क: द्वारा दीपेश पथसारिया, सी –203, रोज़ रेजिडेंसी, एस के आई टी कॉलेज के पास, जगतपुरा, जयपुर–302017 मो. 9983333960