हिंदी से बांग्ला और बांग्ला से हिंदी में अनुवाद कार्य। बांग्ला कविता संग्रह अंतर मम

करना चाहती हूँ एक दस्तखत

न सेमल वन न पलाश
और न ही शाल वनों को घेर कर होता है
स्त्री का प्रेम
और न ही उसकी देह गंध खंडहरों के बीच
तलाशती है अपना प्रेम
बीहड़ों में पीली पतझड़ की पत्तियों की
खड़खड़ाहट में भी नहीं उभरता उसका प्रेम

महुआ बीनती हुई उस स्त्री का प्रेम भी
प्रकृति से घुल मिलकर
गीत के सुर से सुर मिलाता है
और हाथ तेज चलाते हुए
सखियों संग

जब वह खिलखिलाती
तो उतर आता बसंत
जब कुलांचे भरता है प्रेम
गीतों में भी उतर आता महुआ संग बसंत
तब वह गाती है प्रेम के गीत

अपनी अलमस्त चाल से जब
लौटती है वह अपने घर की ओर
शाम का धुंधलका और गहरा कर जाता है
उसके प्रेम को
और उसे थकान महसूस नहीं होती
जब महसूसती है प्रेम
प्रकृति तुम कुछ प्रस्फुटित करती हुई
अद्भुत लगती हो
पलाश वन सेमल वन और शाल वन को
धरती की कोख से उगते हुए
और मैं रोपती हूँ प्रेम
धरती के हर एक शै में

करना चाहती थी एक दस्तख़त
कि मैं भी हूँ तुम-सी पर

अब मैं रोपती हूँ तुम्हारी कोख में
अपने दुख, अपनी फरियाद
और समूचा सुख भी

जो तुम्हारी कोख की भीतरी आंच में
तपकर कभी भूकंप तो कभी
ज्वालामुखी भी हो उठता है

कोख की क्या कहूँ
चाहती तो हूँ कि
चांदनी भर लूं और
आंखें मींचे पड़ी रहूँ बहती नदी में पैर डालकर
शीतल होती रहूं
और घोषित कर दूं अब और नहीं …
स्त्री को पृथ्वी कहना छोड़ दो तुम सब …

संपर्क: मीता दास, 63/4 नेहरू नगर पश्चिम, भिलाई, छत्तीसगढ़- 490020 मो.9329509050/ ईमेलः mita.dasroy@gmail.com