प्रकाशित पुस्तक : ‘आधी रात की बारिश में जंगल’। रेलवे में कार्यरत।
मरता आदमी
मरते आदमी की आंखों में
अंधे कुएं में डूबने
डूबते चले जाने का
दर्द चिलकता है
सांसों पर
पहाड़ का भार तुलता है
जीवन संसार संबंध
कुछ भी नहीं छूटता सहज ही
पर छूट ही जाता है सबकुछ
बहुत कस कर
बंद की हुई मुट्ठी से भी
छूट ही जाती है रेत
नीचे की ओर लुढ़कता पत्थर
लुढ़कता लुढ़कता
अंत को पहुंच जाता है
शेष हो जाती है एक यात्रा
खत्म हो जाती है एक कथा
बुझते दीए की लौ भभक उठती है
जाता हुआ आदमी जी लेना चाहता है
जी भर के बचा हुआ एक एक पल।
चुप्पी
बोलना
संसार से जोड़ता है
बाहर का रास्ता खोलता है
चुप्पी भीतर की ओर
ले जाती है
स्वयं के पास/तक
चुप्पी में बहुत गहरे उतरने पर
स्वयं से दूर भी चला जाता है आदमी
कभी कभी चुप्पी
उदासीनता और विरक्ति के रास्ते
आत्महत्या के द्वार तक भी
पहुंच जाती है
चुप के पानी में
सबसे स्थिर और गहरी
उतरती है छवि
मन की
संसार की
चुप्पी
विरोध और उदासीनता
दोनों का संकेत करती है
विरोध बदलाव की तरफ ले जाता है
उदासीनता मृत्यु की ओर
कभी दुनिया को समझकर
कभी दुनिया से हारकर
चुप होता है आदमी
चुप्पी के दायरे से उठकर
जाता है जब कोई संसार की ओर
स्वयं को और संसार को
बदली हुई दृष्टि से
देख पाता है फिर वह।
घर का टूटना
पुराने मकान का टूटना
सिर्फ मकान का टूटना नहीं होता
उससे जुड़ी स्मृति पर भी
एक गहरी चोट होती है
पुराने मकान को तोड़कर
नया बनाने के क्रम में
चोट सिर्फ
दीवारों और ढलाई पर ही नहीं होती है
उसमें रहने वाले लोगों
और रह चुके लोगों के मन पर भी
वज्रदंड पड़ता है
टूटने के पहले
जो मकान घर होता है
टूटकर सिर्फ मलवा रह जाता है
मलवा जिसमें
स्मृतियों का भी
हाड़ मांस स्वेद रक्त
पड़ा रहता है
जो हैं
वे तो फिर भी रह जाते हैं
जो चले गए
नहीं रहे
इस तरह
उनसे जुड़ी स्मृतियों का विस्तार भी
सिमट जाता है
पर अपनी जरूरतों के लिए
समय की मांग के हिसाब से
तोड़े ही जाते हैं मकान
यह ध्यान मगर रखा जाना चाहिए
कि घर न टूटे
घर ईंट बालू सरिया सिमेंट
से परे है
मकान सिर्फ एक देह है
पर घर आत्मा संपन्न देह
उसमें वास करने वाले
लोगों के सुख दुख
हँसने रोने की अनंत कथाओं
की स्मृतियां मिलकर
एक मकान को घर बनाती हैं।
प्रतीक्षा
हमारी उम्र का एक बहुत बड़ा अंश
बल्कि अधिकांश
प्रतीक्षा करते हुए कट जाता है
कभी डॉक्टर के दवाखाने में
अपनी बारी
पुकारे जाने की प्रतीक्षा
कभी रेलवे प्लेटफॉर्म पर
गाड़ी आने की प्रतीक्षा
कभी किसी बिगड़ गए संबंध के
ठीक हो जाने की प्रतीक्षा
कभी चीज़ों के हक़ में
हो जाने की प्रतीक्षा
सर पर घिरे मुसीबतों के बादल के
टल जाने की प्रतीक्षा
सुबह होने तक
रात के गुजरने की प्रतीक्षा
कभी पराजय के क्रम के
अंत की प्रतीक्षा
कभी प्रयास की सफलता की प्रतीक्षा।
संपर्क :रेलकर्मी, जसीडीह, प्रो़फेसर कॉलोनी, बिलासी टाउन, देवघर, झारखंड-814113 मो. 9304231509
बहुत सुंदर कविताएं ।