अद्यतन कविता संग्रह मन की खुलती गिरहें‘, और अद्यतन कहानी संग्रह तीन लहरें

(1)

इस मौसम भी
गुलमोहर जरूर खिला होगा
मैं ही मुरझा रही हूँ
तुम्हें देखना था जी भर
आंचल में भर लेना था
मन की तहों में दबा कर रखना था
कि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आखिरी प्रेम-पत्र है…

(2)

मेरी उदासियों को पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना
इस तनहाई में बस इतना भरम रखते हैं
गुलमोहर के झरने से पहले
खत्म हो जाएंगी सारी दूरियां
उसके लाल दहकते फूलों से लदी डालियां
बचाए हैं हरे पत्तों में थोड़ा-सा मेरा बचपन
वहीं कहीं चिपकी है उसकी शाख पर
मेरे माथे की लाल बिंदी
बाहर दहक रहा है मौसम
अंदर भरा है महमह गुलमोहर का लाल रंग
इस लाली से बचेगी दुनिया
कि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आखिरी प्रेम-पत्र है…।

(3)

तुम जा रहे हो!
जाओ!
मुझे याद मत करना
मत कुरेदना भूल कर मेरी किसी बात को
हमारे बीच केवल बातें थीं
सेतु …
बस इस सेतु को बचाए रखना
तुम जब भी पुकारोगे
मेरी बातें थाम लेंगी तुम्हारी उंगली …
देखना वहीं कहीं गदराया मिलेगा
दहकते लाल रंग में डूबा
खिलखिलाता गुलमोहर
बचपन की भोली मुस्कान लिए
बिना किसी यातना या छल के
गा रहा होगा वह गीत
जिसे तुम गुनगुनाते थे
हँस कर थाम लेगा तुम्हारा हाथ
जब भी थक कर गिरोगे
महसूसना उसके स्पर्श में
मेरे छुवन को…

मैंने धो -सूखा कर रख लिया है
सहेजकर मन की पिटारी में
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आखिरी प्रेम-पत्र है…।

(4)

सुनो!
मुझसे मत कहना कि तुम प्रेम में थे मेरे
गलती से भी मत कहना
कुछ बातें कहने के साथ ही
अपना अर्थ खो देती हैं
हमारे बीच कितना प्रेम था
सोचना और लिखना
कहना-सुनना
संभव नहीं मेरे लिए
मैंने आंचल के कोर में बांध लिया
फागुन की गांठ की तरह
तपती जेठ की दुपहरी में
जलती धरती की छाती पर
विरहन की हूक की तरह उठती तुम्हारी यादें
इन सन्नाटे भरे दिनों में
जब जीना दुभर हो रहा हो तनहाई में
मैंने सीख लिया प्रेम करना खुद से
पकड़ कर तुम्हारी यादों की डोर
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आखिरी प्रेम-पत्र है…।

(5)

थोड़ा नरम
थोड़ा गरम
थोड़ा खट्टा.. मीठा भी
तुम्हें देखते हुए
मुझे बचपन के चूरन याद आते हैं
खूब गिले -शिकवे
उलाहने
तुम समझे नहीं
मैंने बताया नहीं
जाओ यहीं छोड़कर
अपनी बातों की तासीर
जब तुमने कहा कि
मैं तुम्हारे दिल में रहती हूँ
बस इतना बहुत था
मैंने आंखें बंद कर लीं
सहेज लिया सबकुछ
जाओ! …तुम खुश रहना और बांटते रहना दुनिया में
मेरे हिस्से का प्रेम…
जब -जब खिलेंगे गर्म मौसम में
गुलमोहर के फूल
मैं तलाश लूंगी तुम्हारे प्रेम की लाली
धरती खुश हो लेती है जैसे
तमाम उलाहनों के बीच
गुलमोहर से मिलकर
मैं बचा कर रखूंगी रसोई में
हल्दी के डिब्बे में थोड़ा-सा पीलापन
हल्दी की थाप से सजी तुम्हारी गलियां
जब जोहती हैं बाट बसंत की
सावन को पुकारतीं हैं किसी नवब्याहता बेटी की तरह
मैं जेठ की लू भरी दोपहरी से पूछती हूँ तुम्हारा पता
न जाने किस देश में है तुम्हारा ठौर
तुम जब भी लौटना
पूछ लेना गुलमोहर से मेरा पता
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आखिरी प्रेम-पत्र है।

संपर्क : कृष्णानगर,  मऊ रोड, सिधारी, आज़मगढ, उत्तर प्रदेश-276001/ मो. 9415907958 ईमेल-pandeysoni.azh@gmail.com