वरिष्ठ आलोचक और कवि। प्रमुख कृतियाँ : ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘महादेवी के काव्य का नेपथ्य’। भवानी प्रसाद मिश्र और नंददुलारे वाजपेयी ग्रंथावली का संपादन

 

1

यों तो वह
एक पहुंचा हुआ लीलाधर
लोक-परलोक तक
फैली हुई थी उसकी नटलीला
जब कभी वह मंच पर आता
अधिक से अधिक दर्शक तालियां बजाने लगते
किंतु बचे हुए सहम कर
संजीदा हो जाया करते थे
पर इस बार
यह खेल इतना आसान
कहां था
एक ही अंक के एक ही दृश्य में
बदलने थे कई-कई मुखौटे
कभी कंस दिखना था तो
कभी कृष्ण
फिर दुर्योधन और भीम में
कहां था इतना फर्क
यह उसकी चुनौती का
अंतिम परीक्षा काल था
और दर्शक भी कोई कम कहां थे
पहचान जाते थे उसका चेहरा
मंच पर जितना जितना बदलता जाता था
वह अपना चेहरा
प्रेक्षागृह का समूह
होता जाता था सचेत
उनके अनुभवों की छवियों में
संचित होती जाती थी अन्यमनस्कता
सोचते जाते थे वे
यह उसकी अंतिम भूमिका है
और खत्म होने को है
अब खेल…

2

बारी तो सबकी आएगी
मेरी और तुम्हारी भी
पर इसके पहले बनाया जाएगा माहौल
फिर प्रचारित किया जाएगा
कि ये ही वे तीन हैं
जिनके नाम के पहले अक्षर हैं
एस ए आर
फिर एक दिन तुम्हें बुलाकर कहा जाएगा
दोनों औरों के बारे में कहो
अगर मुकरे या चुप्पी साधी तो
रख दिया जाएगा मुंह पर जूता
फिर तो कहोगे तुम…।
बरी फिर भी नहीं किए जाओगे
निगरानी रखी जाएगी बराबर
कि कहीं कुचली जा चुकी तुम्हारी आत्मा
खड़ी न हो उठे एकदम
और तुम सच कहती फिरे सरेआम
इससे पहले वह ऐसा करे
तुम्हें फिर बुलाया जाएगा
और किया जाएगा घोषित-
तुम देशद्रोही हो, खतरा है तुमसे
सवाल यह नहीं कि तुम हिंदू हो
या हो मुसलमान
सवाल तो यह है कि
तुम्हारी आत्मा
जिंदा है क्यों अभी भी
और आमादा है सच बोलने पर।

3

कोई नहीं करता किसी और की तरह प्रेम
सबकी मुस्कान की तरह
न होती है किसी एक की मुस्कान
आंसू के खारेपन के बावजूद
स्वाद सबके नमक का
उनका अपना होता है
प्रेम की कलाएं भी
कुछ लोग बहुत दूर से
लगाते हैं आवाज
जैसे कि आप ही को बुलाया जा रहा है
फिर मंजरियों के सघन झुरमुट में
छिप जाते हैं शर्मीले कोकिल की तरह
यह भी तो कोई कला होती होगी
जबकि प्रेम अपने ही खिलाफ
की गई कार्रवाई है
फूल उठाकर मारा जाता है किसी और को
चोट पर खुद को लगती है
घायल होते हैं हमीं ही
वसंत का क्या है
वह तो अटल मृत्यु की तरह आता है
और छोड़ जाता है
बहुत सारा पतझर…।

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