(१९४७) बिहार के सासाराम में जन्मी मशहूर उर्दू लेखिका जो फिलहाल करांची में रहती हैं।देश के विभाजन पर चर्चित उपन्यास ‘न जुनूं रहा न परी रही’।२००१ में राष्ट्रपति के.आर.नारायणन के हाथों सार्क लिटररी अवार्ड। |
पिछले पांच दशकों से उर्दू–हिंदी में लेखन।चार कथा संग्रह, नौ उपन्यास और एक शायरी संकलन ‘रास्ता मिल जाएगा’। |
नर्जिस ने सफेद सिर वाली अम्मा को देखा जो सलाखों वाले दरवाजे के दूसरी तरफ बैठी थी।उनकी आंखों से आंसुओं की झड़ी लगी हुई थी।भैया सिर झुकाए हुए था।उसका चेहरा नर्जिस को नजर नहीं आ रहा था।
मेहदी ताली बजाकर जोर से हँसा।इसके बाद उसने सलाखों के बीच से अपने दोनों हाथ बाहर निकाल दिए।
‘मम्मा, मेरी टॉफी?’ वह चहका।
भैया ने अपना झुका हुआ सिर उठाया और मेहदी के दोनों हाथ थाम लिए।नमकीन पानी की बूंदें मेहदी के मिट्टी से अटे हाथों को धोने की नाकाम कोशिश करने लगीं।
नर्जिस ने दूसरे बहुतेरे अच्छे-बुरे दृश्यों की तरह इस दृश्य को भी अपने अंदर रख लिया।उसके दिल को तसल्ली-सी हुई- अम्मा नहीं रहेंगी तब भी मेहदी के सिर पर हाथ रखने वाला तो रहेगा।भैया मुझे जी-जान से चाहता था।निश्चय ही वह मेहदी को भी अजीज रखेगा… भैया ने उससे रहम की अपील पर दस्तखत कराने के लिए कैसी-कैसी मिन्नतें न कीं।लेकिन नर्जिस के लिए बस यही मुमकिन न था।अपील का वक्त गुजर चुका था और अब वह अकेली मौत के सामने खड़ी थी।
अम्मा उसका हाथ यों थामे हुई थीं, जैसे तैरने वाले डूबने वालों का हाथ थामते हैं।इस स्पर्श में बेबसी थी, जुदाई थी, असीम दुख था।यह स्पर्श बाहर की दुनिया से उसका आखिरी संबंध था।वह दुनिया जो हुस्न और बदसूरती से, अच्छे और बुरों से, मोहब्बत और नफरत से भरी हुई थी।
मेहदी हँसता-खिलखिलाता रहा।भैया से बातें करता रहा।कभी वह दो सलाखों के बीच से अपना नन्हा-सा चेहरा आगे निकालकर मम्मा का चेहरा चूमता और कभी हाथ बढ़ाकर नानी के सफेद बालों से उलझता।
‘अम्मा! आप इसी बात पर खुश हो लें कि मेहदी अब आजाद हो जाएगा… सलाखों, हथकड़ियों, जंजीरों और संगीनों के सिवा इसने देखा भी क्या है? यह यहीं पैदा हुआ, यही बैरकें इसका संसार रहीं।अब यह स्कूल जाएगा, बाजार जाएगा, बाग में खेलेगा।भैया, इसे झूले पर जरूर बैठाना!’
‘आपा! तुम्हें खुदा-रसूल का वास्ता है, चुप रहो।’ भैया एकाएक फूट पड़ा और वह खामोश हो गई।
वह भैया और अम्मा की मनःस्थिति तथा दुख को समझती थी, लेकिन उन्हें यह नहीं समझा सकती थी कि इंसान कभी अपने लिए मौत चुनता है तो इसलिए कि दूसरे जिंदा रहें।मौत के प्याले में जब तक जिंदगी के सिक्के न डाले जाएं, आदर्श हाथ नहीं आते।
हुसैन और वह दोनों साथ ही गिरफ्तार हुए थे।बाद में इत्तला आई कि तफतीश के दौरान हुसैन ने खुदकुशी कर ली।वह जानती थी कि कातिल कत्ल हो जाने वालों को खुदकुशी करने वाले ही कहा करते हैं।हुसैन पर से उसका ईमान एक पल के लिए भी डिगा नहीं था।वह भी उसी की तरह जमीर का कैदी था।और जमीर के कैदी खुदकुशी नहीं करते, न ही रहम की दरख्वास्तें किया करते हैं।
आखिरी मुलाकात का वक्त खत्म हुआ तो अम्मा गश खा गईं।भैया सलाखों से चिमट गया।वह उसका ललाट चूम रहा था, उसके हाथों को प्यार कर रहा था, उसके बालों को छू रहा था।
फिर वे लोग चले गए।नहीं, गए नहीं; ले जाए गए।नर्जिस का जी चाहा था कि एक बार, बस आखरी बार भैया को सीने से लगा ले।लेकिन यह मुमकिन न था।जेल के नियम इंसानों ने बनाए थे।इनसे इंसानी रिश्तों और भावनाओं की उम्मीद बेकार थी।
मम्मा गया तो मेहदी बिलखने लगा।वह वहां जाना चाहता था, जहां की कहानियां अम्मी ने उसे सुनाई थीं।लेकिन अम्मी तो उसे कहीं भी नहीं जाने देती थीं।
‘कल चले जाना… मम्मा तुम्हें कल ले जाएंगे।’ नर्जिस मेहदी के गाल चूमने लगी।
वार्डन मरियम ने माँ-बेटे पर एक नजर डाली और सिर झुका लिया।यह कैसी औरत थी, जिसने मौत की सजा के खिलाफ रहम की अपील नहीं की, जिसने फांसी-घाट पहुंच कर एक भी आंसू नहीं बहाया, खुदा से लेकर जेलर तक, किसी को भी गालियां नहीं दीं।यह अजीब औरत थी कि जब उसे कुरान दिया गया तो उसने उसे आंखों से लगाकर एक तरफ रख दिया और अपने बेटे को चूमती रही।मौलवी साहब ने आकर उसे नमाज पढ़ने और खुदा के दरबार में तौबा करने की हिदायत की तो वह मुस्कराती रही।मौलवी साहब के जाने के बाद जाए-नमाज (वह खास किस्म का कपड़ा जिस पर नमाज पढ़ी जाती है) अपने तकिये के नीचे रख दी।तकिये पर सिर रख कर लेट गई और अपने बेटे को कहानियां सुनाने लगी।
जनाना वार्ड कैसी-कैसी मुजरिम और मुल्जिम औरतों से भरा पड़ा था, लेकिन नर्जिस उन सबको अपने आपमें नहीं लगाती थी।बीते चार बरसों में उन बुरी औरतों ने उसे बहुत अच्छी तरह रखा था।वह उनकी समझ से बाहर थी, इसलिए वे सभी उससे मोहब्बत करती थीं।उसका आदर करती थीं।उससे खौफ खाती थीं।उनकी समझ में नहीं आता था कि जब उसने किसी की नाक-चुटिया नहीं काटी, किसी के मवेशी नहीं चुराए, कच्ची शराब और चरस नहीं बेची, किसी को कत्ल नहीं किया तो फिर उसे किन गुनाहों की इतनी बड़ी सजा मिल रही है?
‘बीबी! तुम्हें डर नहीं लगता?’ फांसी-घाट ले जाने के चंद दिन बाद मरियम ने पूछा था।
‘किस बात से डर?’ नर्जिस के लहजे में सुकून था।
‘मौत से।’
‘नहीं।मौत जब अपना अख्तियार हो तो उससे डर नहीं लगता।फिर मेहदी भी तो है।वह मेरे बाद रहेगा और मैं उसमें रहूंगी।और वह जब चला जाएगा तो मैं उसके बच्चों में जिंदा रहूंगी।’
मरियम ने इसके बाद नर्जिस से कोई सवाल नहीं किया।हां, तमाम बैरकों में यह बात जरूर घूम गई थी कि फांसी-घाट में जो बीबी बंद है, वह बहुत पहुंची हुई है।उसे ‘ज्ञान’ हुआ है कि वह अपने बाद भी रहेगी।हाथी के कलेजे वाली है।न होती तो दूसरी औरतों और मर्दों की तरह चीखें मार रही होती, कपड़े फाड़ रही होती, मिन्नतें कर रही होती…
नर्जिस ने महसूस किया कि उसके सामने पहुंच कर लेडी वार्डनों की निगाहें झुक जाती हैं, जेल-सुपरिटेंडेंट को उसकी कोठरी से जाने की जल्दी होती है और सुबह-शाम वह जब अपनी कोठरी से बाहर निकाली जाती है तो हर तरफ सन्नाटा छा जाता है।लड़ती हुई, शोर मचाती हुई औरतें खामोश हो जाती हैं और सलाखों वाले दरवाजों के पीछे से उसे यों देखती हैं, जैसे वह उनमें से नहीं है; किसी और जगह से आई है।
और वह खाना, आखिरी खाना कैसी व्यवस्था से आया था! द लास्ट सपर… उसे महान आर्टिस्टों की तस्वीरें याद हो आईं।मेहदी उस खाने को देखकर किस कदर खुश हुआ था- आज बड़ा मजा आया! उसने मां के गले में बाहें डाल दी थीं।
‘हाँ, मेरी जान! सच कहते हो।’ नर्जिस ने निवाला बनाकर उसे देते हुए निगाहें झुका ली थीं- मेहदी उन आंसुओं को देख न ले जो पलकों की चिलमन से लगे बैठे हैं।
फिर रात हो गई।मेहदी ऊंघने लगा।लेकिन नर्जिस उससे जी भर कर बातें करना चाहती थी।उसकी आवाज सुनना चाहती थी।वह उसे बड़ी देर तक जगाना चाहती थी, ताकि पौ फटने से पहले वे लोग जब उसे लेने आएं तो वह मीठी नींद सो रहा हो।
नर्जिस ने उसकी रोशन आंखों को देखा, उसके खूबसूरत माथे को देखा… ये हुसैन की आंखें थीं, यह हुसैन का माथा था।उस बदन से हुसैन की खुशबू फूटती थी।हुस्न और जिंदगी की खुशबू, उम्मीद की खुशबू।हुसैन! अब जब कि तुम कहीं नहीं हो तो क्या अब भी तुम कहीं रहते हो? जमीन और आसमान के दरम्यान? उसके लहू में भंवर पड़ने लगे।मेहदी को उसने अपने सीने में समेट लिया।
‘बहुत जोर की नींद आ रही है, अम्मी।’ मेहदी ने फरियाद की।
‘मेरी जान! अभी कुछ देर में सो जाना।मुझसे थोड़ी-सी बातें कर लो।’ नर्जिस की आवाज लरजने लगी, ‘कल सुबह मम्मा तुम्हें अपने घर ले जाएंगे।वे तुम्हें कहानियां सुनाएंगे, बाजार ले जाएंगे।जाओगे ना?’
‘सच अम्मी? हमारे साथ आप भी बाजार चलेंगी ना?’ मेहदी नींद को भूलकर उठ बैठा।
‘मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी, बेटे!’
‘तो क्या आप इसी कोठरी में रहेंगी?’
‘नहीं, बेटे! मैं तुम्हारे लिए तितलियां ढूंढने जाऊंगी।’
आहट हुई तो नर्जिस ने सिर उठाकर देखा।वार्डन मरियम सलाखें थामे उन दोनों को देख रही थी।
‘अम्मी कल तितलियां ढूंढने जाएंगी!’ मेहदी ने खुश होकर मरियम को बताया।
‘हां, राजा!… अम्मी से खूब बातें कर लो, खूब-खूब बातें कर लो!’ मरियम की आवाज टूटने लगी तो वह जल्दी से मुड़ गई।
‘आप शाम तक आ जाएंगी ना?’
‘नहीं, मेहदी! तितलियां बहुत तेज उड़ती हैं।मैं उन्हें ढूंढने निकलूंगी तो बहुत दूर चली जाऊंगी।’
‘आप कौन-सी तितली ढूंढेंगी?’
‘नर्जिस एक लम्हे के लिए रुकी, ‘आजादी की तितली, मेरी जान!’ उसने बेटे के बाल चूम लिए।
‘वह किस रंग की होती है?’
‘उसमें धनक (इंद्रधनुष) के सातों रंग होते हैं।’
‘धनक कैसी होती है?’
‘इस बार जब मेह बरसे तो मम्मा से कहना, वे तुम्हें धनक दिखा देंगे।’
‘फिर मैं भी धनक तितलियां ढूंढूंगा।’
‘नहीं, मेरी जान! धनक तितलियां तुम्हारे पास आपसे आप आ जाएंगी।हम इसीलिए तो ढूंढने निकले हैं कि तुम्हें हमारी तरह सफर न करना पड़े।’
नर्जिस का बदन लरजने लगा।वह दीवानावार उसकी बेदाग गरदन चूमने लगी।इस एक हफ्ते के दौरान उसकी आंखों से पहली बार आंसू गिरने लगे।
मेहदी सो गया तो नर्जिस ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।मेहदी के वजूद में उम्मीद का पौधा परवरिश पा रहा था।इसी उम्मीद ने उसके सीने में हाथी का कलेजा रख दिया था, उसे आने वाले जमानों में जिंदा रहने का ‘ज्ञान’ प्राप्त हुआ था।
आसपास की बैरकों से कुरान शरीफ की आयतें पढ़ने और कलमा दोहराने की आवाजें आने लगीं।कोई औरत बड़े मनोयोग से सूरे–रहमान (कुरान की एक आयत) पढ़ रही थी।सबको मालूम था कि बीबी आज रुखसत होने वाली है और यह सब इसी की तैयारी में था।
उसके सीने पर किसी ने बर्छी मारी–भैया मुख्य द्वार के सामने बैठा होगा।उसने जब सांख्यिकी में एम.ए.किया था तो उसके वहमो–गुमान में भी न होगा कि कभी वह आपा की जिंदगी की घड़ियों का शुमार करेगा और एकदम तन्हा होगा।
चेहरे उसकी आंखों के आगे चकफेरियां खाने लगे।मेहरबान और नामेहरबान चेहरे।अजनबी और परिचित आवाजें।नर्जिस को उन अजनबी आवाजों पर अनायास प्यार आया, जो उसका आखिरी सफर आसान करने के लिए अपनी नींदें कुर्बान कर रही थीं।एक सप्ताह पहले तक वह उन आवाजों के साथ थी।वे आवाजें उसे जरा भी नहीं समझती थीं।उसके बारे में कुछ भी तो नहीं जानती थीं।
जिस दिन रहम की अपील की मुद्दत खत्म हुई और इत्तला आई कि सुपरिटेंडेंट और डिप्टी जेल सुपरिटेंडेंट उसे बैरक से फांसी-घाट कत्ल करने के लिए आ रहे हैं तो हर तरफ सन्नाटा था।वह और मेहदी बैरक से रुखसत हुए तो उसने कई औरतों को चुपके-चुपके आंसू पोंछते और चेहरे झुकाए हुए देखा।ये वे औरतें थीं जो छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे को गालियां बकती थीं, गिरहबान तार-तार करती थीं और जिन्हें अलग करने के लिए मेटर्न और वार्डन को बेंत का खुलकर इस्तेमाल करना पड़ता था।
नर्जिस को नींद का झोंका छू कर गुजरा।उसका दिल ऐंठने लगा।मेहदी का दिल उसके दिल के साथ धड़क रहा था।उस नन्हे-से दिल का धड़कते रहना ही मौत के सामने उसकी सबसे बड़ी जीत थी।वह अपने बाद भी रहेगी।लेकिन रूह क्या थी? और अगर थी तो बदन से निकल कर कहां रहती थी? हुसैन कहां था? कहीं भी नहीं।सब कुछ फना हो गया था।फना का मतलब क्या होता है, शब्दकोश के मुताबिक उसे मालूम था।लेकिन अनुभव करने के आधार पर बस मालूम होने ही वाला था।
‘बीबी!’ मरियम ने सलाखों के पास आकर धीरे से आवाज दी।
‘क्या बात है, मरियम? उसने गर्दन उठकर उसकी तरफ देखा।
‘राजा को बिस्तर पर लिटा दो, बीबी! वे लोग आ रहे हैं!’ मरियम की आवाज तड़खने लगी।
एक पल के लिए नर्जिस की जमीन हिलती हुई महसूस हुई।फिर संभल कर उसने करवट ली और सीने से लिपटे हुए मेहदी को बिस्तर पर लिटा दिया- इसे भला मेरी सूरत क्या याद रहेगी? इसके लिए तो मैं सिर्फ एक नाम, एक साया रहूंगी!
‘सारी खताएं माफ कर देना, बीबी! हम रोटी उसी की खाते हैं… पेट बड़ा बदकार है, बीबी!’ मरियम सलाखों से सिर टिकाकर बिलखने लगी।
नर्जिस ने चारपाई से उतर कर दोनों हाथ सलाखों से बाहर निकाले और मरियम का कंधा थाम लिया।लफ्ज बेकार थे।भारी कदमों की चाप करीब आई तो नर्जिस ने मरियम का बाजू थपथपाया।उसने नजरें उठाकर डबडबाई आंखों से नर्जिस को देखा।सफेद मलमल के दुपट्टे से अपनी आंखें पोंछी और सावधान की मुद्रा में खड़ी हो गई।
मरियम ने ताले में चाबी घुमाई और बड़ी आहिस्तगी के साथ दरवाजा खोल दिया।जेल सुपरिटेंडेंट ने लोहे के दरवाजे को धक्का दिया तो दीवार से टकरा कर आवाज हुई
‘साहब जी! बच्चा सो रहा है, जग न जाए।’ वार्डन मरियम ने आने वालों को बड़ी नर्मी से याद दिलाया।
‘अच्छा! बकबक मत करो।बड़ी आई है बच्चे वाली!’ सुपरिटेंडेंट ने उसे तेज आवाज में झिड़का।
‘सर! आई रिक्वेस्ट यू नोट टू टाक लाउडली।’ (जनाब! मैं आपसे दरख्वास्त करता हूं कि जोर से मत बोलए) नौजवान मजिस्ट्रेट ने एक नजर सोए हुए मेहदी पर डाली और ललाट से पसीना पोंछा।
सुपरिटेंडेंट की त्योरी पर बल पड़ गए– ये नए अफसर अपने आपको जाने क्या समझते हैं? उसका मुंह कड़वा हो गया।फिर उसने अपने आप पर काबू पाते हुए जाब्ते की कार्रवाई शुरू की।पहले उसने नर्जिस की पहचान की और इसके बाद एक कागज खोल कर दफ्तरी लहजे में ऊँची आवाज में पढ़ने लगा– यह कागज बिस्मिल्लाह से शुरू होकर इस आशय पर खत्म हुआ कि मुजरिम के गले में फांसी का फंदा उस वक्त तक प़ड़ा रहे जब तक कि उसका दम न निकल जाए।
चिकित्सा अधिकारी ने आगे बढ़ कर नर्जिस की नब्ज देखी, दिल की धड़कन सुनी और आहिस्ता से सिर हिला दिया।डिप्टी सुपरिटेंडेंट ने उससे कुछ कागजों पर दस्तखत करवाए।मजिस्ट्रेट ने उन दस्तखतों की तस्दीक की और सुपरिटेंडेंट कोठरी से बाहर निकल गया।
डिप्टी सुपरिटेंडेंट ने वार्डन मरियम को इशारा किया।वह अंदर आई।उसका चेहरा जैसे कांसी में ढल गया था।निगाहें झुकी हुई थीं।वह नर्जिस के दोनों हाथ थाम कर पुश्त पर ले गई और उन्हें चमड़े के तस्मे से बांधने लगी।नर्जिस ने उसकी उंगलियों की लरजिश और नमी को महसूस किया।वह तन्हा नहीं थी।बाहर बहुत से लोग थे।अंदर भी।तमाम बैरकों पर इस वक्त राइफलधारियों का पहरा होगा।मुख्य द्वार के बाहर बारह वार्डनों की एक पलटन तैयार हो चुकी होगी।राइफलों में दस-दस गोलियां होंगी।और उन्हीं के सामने खाक पर भैया बैठा होगा।मेहदी का चेहरा उसके सामने था।वह एकटक उसे देख रही थी।मेट्रन के इशारे पर मरियम ने उसका बाजू थामा, ‘चलो बीबी!’
वह एक कदम बढ़ी।फिर पलट कर उसने मेहदी को देखा।वह कुलबुला रहा था।सुबकियां ले रहा था।शायद कोई डरावना ख्वाब देख रहा है।नर्जिस का दिल किसी ने मुट्ठी में जकड़ लिया।आंखों की दहलीज तक आने वाले आसुंओं को उसने कोशिश करके पीछे धकेला।वह उन लोगों के सामने थी जिन्होंने उसकी और उस जैसी दूसरों की रूह को मात देने की जी-तोड़ कोशिशें की थीं, लेकिन वह उनसे हारी नहीं थी तो अब आखिरी लम्हों में उन्हें जीत के स्वाद से क्यों परिचित कराए?
नौजवान मजिस्ट्रेट की निगाहों ने उसकी निगाहों का पीछा किया।
‘बच्चा कहां रहेगा?’ उसने मेट्रन से पूछा।
‘बच्चे का मामू बाहर इंतजार कर रहा है जी।’
नर्जिस के सीने पर घूंसा लगा।भैया को उसने किस इम्तहान में डाल दिया था।
मजिस्ट्रेट के ललाट पर शिकन थी।उसने नर्जिस पर एक गहरी नजर डाली और राहदारी में खड़ी एक वार्डन को आवाज दी।
‘जी, साहब।’ बार्डन अंदर आ गई।
‘बच्चे को गोद में उठा लो… जरा एहतियात से।’
‘साहब जी! मैं उठा लूं? मरियम की आवाज में याचना थी।
‘चलो, तुम ही सही।इसे बीबी के साथ लेकर चलो।’
‘लेकिन यह तो जेल मेनुअल के…’ डिप्टी सुपरिटेंडेंट ने बाधा पहुंचानी चाही।
‘टू हेल विद द जेल मेनुअल!’ (जहन्नुम में जाएं जेल के नियम) नौजवान मजिस्टे्रट ने कहा और तेज कदमों से बाहर निकल गया।
मरियम ने आगे बढ़कर मेहदी को उठाया और सीने से लगा लिया।वह फौरन चुप हो गया।डिप्टी सुपरिटेंडेंट के नेतृत्व में काफिला रवाना हुआ।दो सिपाही आगे चल रहे थे और दो पीछे।दरम्यान में वह थी और उसके दाएं–बाएं मरियम तथा दूसरी वार्डन चल रही थीं।चलते हुए भी नर्जिस की निगाहें मेहदी पर जमी हुई थीं।
बाहर मई के महीने की रात में पौ फटने से पहले की खुशगवार ठंडक रची हुई थी।डूबते हुए चांद की रोशनी में उसने फांसी के तख्ते को देखा।सीढ़ियां उसे नजर आ रही थीं।मौत तो पाताल में उतरने का नाम है।इस पाताल में उतरने के लिए सीढ़ियां क्यों चढ़नी पड़ती हैं? उसे जल्लाद नजर आया।आज उसके बच्चे बड़े खुश होंगे।बाप को आज फांसी-भत्ता मिलेगा।दस रुपए।दस रुपए बहुत होते हैं।इन रुपयों से कई चीजें खरीदी जा सकती हैं।नर्जिस का जेहन भटक रहा था।उसके पैरों में कोई कंपन न था।हर तरफ सन्नाटा था।हर शख्स की निगाहें उसके कंपनरहित कदमों पर जमी हुई थीं।अचानक वह रुक गई।
‘मरियम!’ उसकी आवाज सन्नाटे में बिजली की तरह चमकी।
‘हुक्म दो, बीबी!’ वार्डन मरियम की आवाज आंसुओं में भीगी हुई थी।
न जाने कौन हाकिम था और कौन हुक्म मानने वाला? उसने मरियम को करीब आने का इशारा किया।मरियम उसके सामने झुक गई।पीठ पर बंधे हुए नर्जिस के दोनों हाथ मेहदी को छूने के लिए फड़के और अपनी जगह स्थिर हो गए।मेहदी नींद में हँस रहा था।वह शायद परियों से खेल रहा था।नर्जिस ने धुंधलाई हुई आखों से जिंदगी को देखा फिर आहिस्ता से उसका माथा चूमा।गाल और बाल चूमे।जिंदगी जिंदगी से रुखसत हो रही थी।
वह सीढ़ियां चढ़ने लगी।फांसी के तख्ते पर पहुंची तो सरकारी जल्लाद उसके कदमों में झुका और तसमे से उसके पैर बांधने लगा।नर्जिस ने ओझल होते हुए दृश्य पर एक नजर डाली और उसे भी अपने अंदर रख लिया।उसकी आंखें बंद थीं और दृश्य उसके अंदर।वह जानती थी कि चांद डूब रहा है।सुबह का सितारा उग चुका है।मेहदी परियों से खेल रहा है।सूरज प्रकट होने वाला है और … अल्लाह के बरकत वाले नाम से शुरू होने वाले हुक्मनामे पर कार्रवाई का वक्त आ पहुंचा है।
संपर्क :७२, लाला लाजपतराय कॉलोनी, पांचवीं चौपासनी रोड, ईदगाह, जोधपुर–३४२००३ (राजस्थान), मो.८०००२४५६७३