एंदलुरी सुधाकर : व्यापक रूप से सम्मानित तेलुगु दलित कवि, प्रोफेसर और अनुवादक। अपनी विशेष शैली के लिए विख्यात। येशुवा स्मृति पुरस्कार से सम्मानित।
अवधेश प्रसाद सिंह : लेखक, अनुवादक एवं भाषाविद

मेरी आत्मकथा का विमोचन
एक भव्य भवन में किया गया
खुले मंच पर किया गया मेरा सम्मान
जैसे ही मेरे गले में डाली गई माला
बीते वर्षों के घाव भीतर से टीस उठे
जब मेरे सिर पर की गई फूलों की बारिश
कांटेदार चाबुक की मार
अंदर तक उतर गई
जब किया गया मेरे लिए सम्मान-पत्र का वाचन
मेरी आँतों में अपमान के नश्तर चुभने लगे
जब मेरे पीछे होने लगे मंत्रोच्चार
मेरे कानों में दहकने लगी
पिघले सीसे की असह्य वेदना
जब उन्होंने मुझे मंच पर बिठाया
मुझे अपने दादा का चेहरा याद आया
जिन्हें गांव के बाहर किया गया था खड़ा
जब पानी से भरे ग्लास रखे गए मेरे सामने
जमीन पर घुटने टेक कर
पानी पीने के पुराने दृश्य
तपते रेगिस्तान की प्यास की तरह
मुझे दहला गए
जब मेरे कंधों पर डाले गए शॉल
स्मृतियों में कौंध गई
ब्लाउजरहित मेरी दादी की देह
मेरा हृदय तार-तार रो उठा
जब भेंट किए गए मुझे रेशमी कपड़े
मेरी आँखों के आगे उभर आए
मेरे दादा के तन के खुरदरे भद्दे चिथड़े
जब समारोह की दावत में
मुझे किया गया आमंत्रित
भोज की रातों में मवेशियों के बाड़े में
फेंक कर दिए जानेवाले पत्तलों की हो आई याद
जैसे जैसे समय मेरे चरणों पर
करता है साष्टांग प्रणिपात
मिट्टी से सने मेरे परदादों के जूतेरहित पैर
मेरी स्मृति-पटल पर छा जाते हैं
जब मेरे बचपन में गुरुजन दिख जाते थे सड़क पर
मेरे अंगूठे खुद को छिपा लेते थे मुट्ठियों के भीतर
मानो मुर्गी का हो गया हो सामना बाज से
जब तोते की तरह राम के भक्त
मेरी कविता की सराहना में स्तुति गायन करते हैं
मिट्टी में दबी मेरी जाति की कविता
मुझमें क्रूरता के भाव भर देती है
जब प्रतीक्षारत रंगीन चौराहे
फेस्टूनों से करते हैं मेरा स्वागत
सारे स्वर्ण हंस सात की जगह पाँच कदम
मेरे साथ चलने को होते हैं आतुर
मेरे पुरखों के शरीरों की मैल
कब्रों से निकल कर फिर से लेने लगती है सांसें
जब सूर्य की रोशनी से महरूम महिलाएँ
अपनी रुचि से
मेरे विवाह के लिए करती हैं प्रतिस्पर्धाएं
तब लटक जाते हैं सिर
कटे अंग मेरे भीतर भड़क उठते हैं
जब मंदिर और नए देवता
श्रद्धांजलि देने के लिए धैर्य रख जोहते हैं बाट
नीम अंधेरे में मंदिर के घंटे हँसते हैं विद्रूप हँसी
मैं पांचवे सूर्य की तरह उगी हूँ
चारदीवारों में घिरे गहरे बादलों को चीर कर
आज मेरी रक्त किरणें
चंद्रमा के चेहरे पर चमक रही हैं
नए सूर्य की रोशनी में
समय पढ़ेगा मेरी आत्मकथा
एक पाठ्य पुस्तक के रूप में।
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