परिचर्चा
उपभोक्तावादी विश्व में ‘कामायनी,’ प्रस्तुति : पूजा गुप्ता

उपभोक्तावादी विश्व में ‘कामायनी,’ प्रस्तुति : पूजा गुप्ता

महावीर प्रसाद द्विवेदी पर शोध कार्य। बंगवासी मॉर्निंग कॉलेज में शिक्षण।जयशंकर प्रसाद आधुनिक युग में लिख रहे थे। वे ‘कामायनी’ के माध्यम से पौराणिक युग के यथार्थ व्यक्त न करके अपने युग के यथार्थ व्यक्त कर रहे थे। अपने युग की अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों के आधार पर ही...

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क्या कृत्रिम मेधा विश्व को बदल देगी : प्रस्तुति- अनुपम श्रीवास्तव

क्या कृत्रिम मेधा विश्व को बदल देगी : प्रस्तुति- अनुपम श्रीवास्तव

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के सूचना एवं भाषा प्रौद्योगिकी विभाग में सहायक प्रोफेसर (भाषाविज्ञान)।भारतीय भाषा-चिंतन के साथ भाषा, संस्कृति और मीडिया अध्ययन में रुचि। सूचना क्रांति की तेज रफ्तार से गुजरता विश्व कृत्रिम बुद्धिमता के नए दौर में प्रवेश कर चुका है। आज से...

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हिंदी प्रदेश की बोलियां और उनका समाज : प्रस्तुति- धीरेंद्र प्रताप सिंह

हिंदी प्रदेश की बोलियां और उनका समाज : प्रस्तुति- धीरेंद्र प्रताप सिंह

युवा अध्येता। ‘भूमंडलीकरण की कहानियाँ’ और ‘हिंदी काव्य’ नामक संपादित पुस्तक प्रकाशित। पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च के अंतर्गत ‘इक्कीसवीं सदी में भोजपुरी भाषी लोक जीवन’ पर शोधरत। ‘धवल’ उपनाम से कविताएं भी लिखते हैं।हिंदी की बात होगी तो हिंदी प्रदेश की बोलियां भी सामने आएंगी।...

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कवि निराला : राष्ट्रबोध और विश्वबोध, प्रस्तुति : सूर्यदेव राय

कवि निराला : राष्ट्रबोध और विश्वबोध, प्रस्तुति : सूर्यदेव राय

युवा लेखक, कवि और संस्कृति कर्मी। अध्ययनरत।निराला आधुनिक हिंदी कविता के सूर्य हैं। उनकी संवेदना का एक छोर यदि राष्ट्र-प्रेम से जुड़ा है, दूसरा छोर विश्वबोध से। उनका परिवार पूरा विश्व है। निराला की कविताओं में जीवन की सार्थकता का अर्थ व्यक्तिगत राग-द्वेष की सीमा का...

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हिंदी कहानी का वर्तमान, प्रस्तुति: नीतू सिंह भदौरिया

हिंदी कहानी का वर्तमान, प्रस्तुति: नीतू सिंह भदौरिया

युवा कवयित्री और कहानीकार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।किसी भी कालखंड की साहित्यिक विशिष्टता को चिह्नित करने के लिए हमें अतीत और वर्तमान दोनों को देखना पड़ता है। हिंदी कहानी के हर दौर में रचनाकारों ने अपने समय की नब्ज़ टटोलकर रचना की है। यदि बात कहानी...

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बौद्धिक स्वतंत्रता का सवाल, प्रस्तुति : संजय जायसवाल

बौद्धिक स्वतंत्रता का सवाल, प्रस्तुति : संजय जायसवाल

कवि, समीक्षक और संस्कृति कर्मी।विद्यासागर विश्वविद्यालय, मेदिनीपुर में सहायक प्रोफेसर।दुनिया में बौद्धिक स्वतंत्रता श्रेष्ठ विचार के लिए हमेशा जरूरी बताई जाती रही है। बौद्धिक होने का अर्थ एक ऐसी ज्ञान परंपरा से अपने को जोड़ना है, जो विद्वता के साथ तर्क से जुड़ा होता है।...

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2047 का भारत, प्रस्तुति : मृत्युंजय श्रीवास्तव

2047 का भारत, प्रस्तुति : मृत्युंजय श्रीवास्तव

प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी। दुनिया के लोग आने वाले युग की कल्पना करते रहे हैं। कुछ तो सौ-सौ साल बाद की भी। अभी जी-20 की समाप्ति पर यह आशा व्यक्त की गई है कि 2047 तक देश विकसित हो जाएगा और अर्थव्यवस्था के मामले में तीसरे नंबर पर पहुंच जाएगा। क्या तब...

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धर्म, स्त्रियां और आज के विमर्श : प्रस्तुति जीतेश्वरी

धर्म, स्त्रियां और आज के विमर्श : प्रस्तुति जीतेश्वरी

युवा समीक्षक, लेखिका। संप्रति ‘21वीं सदी की हिंदी कहानी’ पर हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग से शोध कार्य।      दुनिया का कोई देश या जाति हो उसका धर्म से संबंध रहा है और आज भी है। दुनिया के इतिहास के साथ जहां धर्म जुड़ा है, धर्म के साथ स्त्री का संबंध भी...

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हिंदी नवजागरण और महावीर प्रसाद द्विवेदी का युग : प्रस्तुति पूजा गुप्ता

हिंदी नवजागरण और महावीर प्रसाद द्विवेदी का युग : प्रस्तुति पूजा गुप्ता

महावीर प्रसाद द्विवेदी पर शोध कार्य। बंगवासी मॉर्निंग कॉलेज में अध्यापनमहावीर प्रसाद द्विवेदी ने भारतेंदु युग के हिंदी नवजागरण को अपने लेखन, संपादन और साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से विकसित किया। द्विवेदी युग को हिंदी नवजागरण की दूसरी मंजिल माना गया है। उस पर 1905...

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लोकप्रियतावाद का नया दौर- प्रस्तुति : मधु सिंह

लोकप्रियतावाद का नया दौर- प्रस्तुति : मधु सिंह

विद्यासागर विश्वविद्यालय, मेदिनीपुर में पीएच.डी. की शोध छात्रा।कोलकाता के खुदीराम बोस कॉलेज में शिक्षण।लोकप्रियतावाद एक इंद्रजाल की तरह है, जिसके आकर्षण से लोग बच नहीं पाते हैं। आज बाजार, प्रबंधन, मीडिया और टेक्नोलॉजी द्वारा बुने गए जाल में आम आदमी उलझता जा रहा है। आज...

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लेखन एक चुनौती है : प्रस्तुति -सुशील कान्ति

लेखन एक चुनौती है : प्रस्तुति -सुशील कान्ति

भरतीय भाषा परिषद  प्रतिवर्ष चार भारतीय भाषाओं के वरिष्ठ साहित्यकारों  को कर्तृत्व समग्र सम्मान और चार युवा लेखकों को युवा पुरस्कार प्रदान करती है। कोरोना काल तथा बाद की असुविधाओं के कारण स्थगित पुरस्कार समारोह 8 अप्रैल, 2023 को आयोजित हुआ। इस बार ‘वागर्थ’ में परिचर्चा...

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साहित्य की विविधता पर खतरे, प्रस्तुति : रूपेश कुमार यादव

साहित्य की विविधता पर खतरे, प्रस्तुति : रूपेश कुमार यादव

विद्यासागर विश्वविद्यालय में शोधार्थी और संस्कृतिकर्मी। मनोरंजन बाजार के बढ़ते प्रभाव ने आज लोगों में किताबें पढ़ने की रुचि कम कर दी है।इसका असर विधाओं के अस्तित्व पर पड़ा है।पाठकों की रुचि का लेखकों पर असर पड़ता है। साहित्य की कई विधाएं हैं- कहानी, उपन्यास, कविता,...

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नई कहानी के दौर में शेखर जोशी, प्रस्तुति :मनोज मोहन

नई कहानी के दौर में शेखर जोशी, प्रस्तुति :मनोज मोहन

कवि और पत्रकार।सीएसडीएस की पत्रिका ‘प्रतिमान’ से संबद्ध। कुल छप्पन कहानियों के लेखक शेखर जोशी नई कहानी के दौर के महत्वपूर्ण कथाकार थे।वे नैसर्गिक प्रतिभा के धनी थे।अमरकांत के साथ वे नई कहानी के प्रचारित धड़े का प्रतिमुख माने जाते थे।१९५१ से वे कहानियां लिखने लगे...

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भारतीय नदियों पर खतरे : प्रस्तुति -रमाशंकर सिंह

भारतीय नदियों पर खतरे : प्रस्तुति -रमाशंकर सिंह

डॉ. अंबेडकर विश्वविद्यालय में एकेडमिक फेलो। ‘नदी पुत्र : उत्तर भारत में निषाद और नदी’ नामक किताब प्रकाशित। भारतीय समाज की निर्मिति में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान है, उनके बिना देश के लोगों के विविधतापूर्ण जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।भारत में छोटी-बड़ी नदियों से...

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सत्ता और कला-साहित्य : प्रस्तुति -जीतेश्वरी

सत्ता और कला-साहित्य : प्रस्तुति -जीतेश्वरी

युवा लेखिका।संप्रति २१वीं सदी की हिंदी कहानी पर हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग से शोध कार्य।दुनिया की किसी भी भाषा में लिखा जाने वाला साहित्य इसका साक्ष्य है कि साहित्य प्रलोभन या दमन के बावजूद सत्ता-व्यवस्था के विरोध में रहा है।सत्ता भी प्रारंभ से साहित्य को अपने...

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दलित आंदोलन की दिशाएं : प्रस्तुति – प्रदीप ठाकुर

दलित आंदोलन की दिशाएं : प्रस्तुति – प्रदीप ठाकुर

कवि और आलोचक। ‘कुसुम वियोगी की चुनिंदा कविताएं’ संपादित पुस्तक।है।तृतीय ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित।केंद्रीय हिंदी निदेशालय, दिल्ली में मूल्यांकक के पद पर कार्यरत।भूमंडलीकरण के बाद से दुनिया तेजी से बदली है।समाज में रहने वाला मनुष्य अपनी-अपनी...

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साहित्य उत्सव का नया दौर, प्रस्तुति :मनोज मोहन

साहित्य उत्सव का नया दौर, प्रस्तुति :मनोज मोहन

कवि और पत्रकार।सीएसडीएस की पत्रिका ‘प्रतिमान’ से संबद्ध।साहित्य का भविष्य धीरे-धीरे गंभीर चिंतन का विषय बन गया है।बड़े साहित्य उत्सवों ने इसके भविष्य के संबंध में कुछ नए संकेत दिए हैं, जिनपर विस्तृत चर्चा जरूरी है।मैंने प्रयास किया, पर फेस्टिवल में जाने के अवसर और...

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हिंदी प्रदेश की बोलियां और उनका समाज : प्रस्तुति- धीरेंद्र प्रताप सिंह

भारतीय बुद्धिजीवियों का संकट प्रस्तुति :मनोज मोहन

कवि और पत्रकार।सीएसडीएस की पत्रिका ‘प्रतिमान’ से संबद्ध। भारतीय बुद्धिजीवी और देश के आम लोगों के बीच कितना संबंध बचा हुआ है, यह चिंता का विषय होना चाहिए।भारतीय बुद्धिजीवी समुदाय के साथ-साथ हिंदुस्तानी बौद्धिक समाज के बारे में सोचा जाना चाहिए कि वह किस संकट से गुजर रहा...

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संस्कृत साहित्य का समकाल : प्रस्तुति – प्रवीण पंड्या

संस्कृत साहित्य का समकाल : प्रस्तुति – प्रवीण पंड्या

संस्कृत कवि एवं समीक्षक।चार काव्य संग्रह सहित २५ पुस्तकें प्रकाशित। ‘संस्कृत काव्यशास्त्र और विमर्श’ हाल में प्रकाशित एक चर्चित पुस्तक। भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा का अपना महत्व इसके साहित्य के कारण है।संस्कृत साहित्य उत्तर और दक्षिण भारत में समान रूप से रचित...

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हिंसा की सभ्यता, प्रस्तुति : रूपेश कुमार यादव

हिंसा की सभ्यता, प्रस्तुति : रूपेश कुमार यादव

विद्यासागर विश्वविद्यालय में शोधार्थी और संस्कृतिकर्मी। हिंसा एक आदिम प्रवृत्ति है।इसका लक्ष्य है, सामने वाले में वर्चस्व के लिए भय और आतंक पैदा करना।हिंसा की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि हिंसा किसी व्यक्ति या समूह के विरुद्ध शारीरिक शक्ति का साभिप्राय उपयोग है।यह...

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